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वर्चुअल कोर्ट ही भारत का भविष्य, अब सरकार अधिनियम लाये

115 वें आरटीआई वेबिनार में विशिष्ट अतिथियों ने भारत में पेंडिंग केसों के विषय में चर्चा की

कहा यदि पेंडेंसी कम करना है और लोगों की दिक्कतें कम करना है तो वर्चुअल कोर्ट ही समाधान 

समय और पैसा बचता है, मानसिक तनाव से फुर्सत मिलती है 

पर्यावरण के लिए भी उचित क्योंकि ई-फाइलिंग से कागजों के बोझ से मिलती है मुक्ति।

वर्चुअल कोर्ट ही भारत का भविष्य है और अब सरकारों को इसके लिए अधिनियम पारित करना चाहिए। वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से भारत के विभिन्न न्यायालयों में पेंडिंग पड़े हुए प्रकरणों का जल्दी और त्वरित गति से निपटारा करने और समय, मेहनत एवं पैसे की बचत करने हेतु इस नई व्यवस्था को लागू किया जाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।

इस विषय पर 115 में राष्ट्रीय आईटीआई वेबीनार में उपस्थित विशेषज्ञ इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी, लॉ कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर अश्विन कारिया, मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, आरटीआई एक्टिविस्ट भास्कर प्रभु एवं विजय सिंह पालीवाल, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी सहित अन्य पार्टिसिपेंट्स ने वेबीनार के दौरान बात कही।

न्यायालयों में पेंडिंग केसों को कम करने और त्वरित न्याय उपलब्ध कराने में वर्चुअल कोर्ट मददगार – जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा

115 वें वेबिनार में उपस्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा ने कहा कि आज कोर्ट में पेंडेंसी काफी तेजी से बढ़ रही है और आम व्यक्ति के लिए न्याय सुलभ नहीं हो पा रहा है। कोर्ट ज्यादातर सामर्थ्यवान लोगों का अड्डा बन गया है जहां पर अपराधी अपराध करके अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि मामले की सुनवाई में दशकों बीत जाएंगे और उम्र व्यतीत होने के बाद कब फैसला आएगा इसका कोई पता नहीं। गरीब सामान्य व्यक्ति न्यायालयों तक अपनी पहुंच नहीं बना पाता क्योंकि दशकों चलने वाले प्रकरणों में पैसा और समय उनके पास नहीं रहता। ऐसे में आज भारत की न्याय व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए समस्त तकनीकी प्रयोगों को अपनाना पड़ेगा और न्यायालयों की पेंडेंसी को कम करना पड़ेगा। इसमें न्यायाधीशों के साथ सरकार प्रशासन और अधिवक्ताओं का एकजुट होकर प्रयास करना होगा। पूर्व न्यायाधीश ने कोर्ट पेंडेंसी से जुड़ी हुई कई दिक्कतों के विषय में विस्तार से चर्चा किये और सबको मिलकर समस्या के समाधान के लिए आगे आने के लिए प्रेरित किया।

पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से भी वर्चुअल हियरिंग आवश्यक – शैलेष गांधी 

पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने वर्चुअल कोर्ट से जुड़े हुए विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से भी वर्चुअल हियरिंग आवश्यक हो जाती है क्योंकि इसमें अनावश्यक कागजों का बोझ खत्म होता है और इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग के माध्यम से आसानी से काम किया जा सकता है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान दशकों पूर्व किए गए इन प्रयोगों पर कहा की ऐसी व्यवस्थाएं केंद्रीय सूचना आयुक्त रहते समय अपने कार्यालय में उन्होंने लाई जिससे उन्हें 4 वर्ष के कार्यकाल के दौरान 20 हज़ार से अधिक प्रकरणों का निपटारा करने में आसानी हुई। शैलेश गांधी देश के पहले सूचना आयुक्त रहे जिन्होंने यह व्यवस्था अपने कार्यालय में लागू की। उन्होंने कहा कि इससे व्यक्ति को धन सेहत समय सभी की बचत होती है। जिस प्रकार भारतीय न्यायालयों में प्रकरणों की पेंडेंसी 5 करोड़ के ऊपर जा रही है ऐसे में वर्चुअल कोर्ट ही एकमात्र समाधान है जिसे सभी पक्षों को सकारात्मक भाव से स्वीकार करते हुए भारतीय न्यायिक व्यवस्था में अंगीकार किया जाना चाहिए।

हमने क्या निर्णय दिया यह ऑनलाइन मौजूद रहता है जिससे निर्णय में संदेह नहीं होता- राहुल सिंह

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की वर्तमान समय में उन्होंने फेसबुक लाइव के माध्यम से मप्र सूचना आयोग की सुनवाई ऑनलाइन प्रारंभ की जिसमें सुनवाई से संबंधित विजुअल किसी भी समय ऑनलाइन प्राप्त किया जा सकता है। जिससे यदि मामला हाईकोर्ट अथवा किसी अन्य कोर्ट में चैलेंज किया जाता है तो सबूत के तौर पर विसुअल मौजूद रहता है। राहुल सिंह ने यह भी कहा कि व्यवहारिक दृष्टि से भी यह उत्तम व्यवस्था है क्योंकि बंद कमरे में सुनवाई में कई बार दुर्व्यवहार भी किया जा सकता है लेकिन जब सुनवाई का लाइव प्रसारण होता है तो ऐसे में सब ऑनलाइन रिकॉर्ड हो जाता है जिससे अपने व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए व्यक्ति बाध्य होता है। मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि कई बार अधिकारियों को सुनवाई में उपस्थित होने के लिए दो से तीन दिवस का समय व्यर्थ हो जाता है लेकिन सुनवाई मात्र आधे घंटे से 45 मिनट तक ही होती है ऐसे में वर्चुअल सुनवाई एक बेहतर व्यवस्था है जिसमें समय धन और तनाव से छुटकारा मिलता है।

सभी की राय वर्चुअल कोर्ट ही न्यायिक व्यवस्थाओं के समस्या का समाधान 

इसी प्रकार कार्यक्रम में पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने भी वर्चुअल कोर्ट पर अपने विचार रखते हुए कहा कि यह समय की मांग है और इस व्यवस्था को लागू करने से काफी फायदे हैं। कार्यक्रम में आरटीआई एक्टिविस्ट विजय सिंह पालीवाल, नेशनल फेडरेशन के संयोजक प्रवीण पटेल, एक्टिविस्ट भास्कर प्रभु, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य अश्विन कारिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए और सभी ने कहा कि वर्तमान समय में जब न्यायालयों में प्रकरणों की पेंडेंसी बढ़ती जा रही है ऐसे में समय और धन दोनों की बचत होगी और व्यक्ति को सुनवाई के लिए व्यर्थ में जाने वाले सप्ताह भर के समय से होने वाले मानसिक और शारीरिक तनाव से छुटकारा मिलेगा।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि सहयोगियों में अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल वरिष्ठ पत्रिका पत्रकार मृगेंद्र सिंह सम्मिलित रहे। आरंभिक कार्यक्रम का कोऑर्डिनेशन प्रोफेसर अश्विन कार्य के द्वारा किया गया।

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