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4 सूचना आयुक्तों ने एकबार पुनः आरटीआई कानून में डेटा बिल के माध्यम से दुष्प्रभावी संशोधन पर दर्ज कराई आपत्ति

131 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का हुआ आयोजन

RTI कानून पर दुष्प्रभावी संशोधन न करे सरकार – सत्यानंद मिश्रा पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त

पत्रकारिता के क्षेत्र से भी जुड़े लोगों ने आरटीआई कानून में दुष्प्रभावी संशोधन का किया विरोध।

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प्रस्तावित डेटा बिल के माध्यम से आरटीआई कानून पर दुष्प्रभावी संशोधन को लेकर एक बार पुनः देश के जाने-माने चार सूचना आयुक्तों ने कमर कसी है। राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किए जाने वाले आरटीआई वेबीनार के 131 वें संस्करण में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022 के प्रस्तावित मसौदे में आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) को हटाने और आरटीआई कानून पर सर्वोपरि प्रभाव रखने के विषय को लेकर जाने-माने सूचना आयुक्तों ने एक बार पुनः चिंता जाहिर की है और सरकार को एक बार पुनः लेख करने का आह्वान किया है। 131वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में उपस्थित मुख्य अतिथियों के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व हरियाणा राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप सहित पत्रकारिता के क्षेत्र से भी वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक चिंतक आरटीआई एक्टिविस्टों ने हिस्सा लिया और प्रस्तावित डेटा बिल में आरटीआई कानून पर किए जाने वाले दुष्प्रभावी संशोधन को लेकर चिंता जाहिर की है।

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आरटीआई कानून पर दुष्प्रभावी संशोधन न करे सरकार – पूर्व सीआईसी सत्यानंद मिश्रा

कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ रिटायर्ड भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं भारत के पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा ने कहा की आरटीआई कानून में विभिन्न स्तर पर पहले ही संशोधन किए जा चुके हैं जिसकी वजह से आरटीआई कानून अपने वास्तविक स्वरूप में न रहकर काफी कमजोर हुआ है। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटक्शन बिल 2022 के प्रस्तावित मसौदे के माध्यम से यदि आरटीआई कानून में प्रस्तावित दुष्प्रभावी संशोधन किया जाता है तो इससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हालांकि पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में इंटरनेट डिजिटल डेटा की चुनौती को देखते हुए डेटा प्रोटेक्शन बिल लाया जाना भी आवश्यक है परंतु बिल में इस बात का आवश्यक तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसे पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बनाया गया सबसे सशक्त कानून सूचना का अधिकार कानून प्रतिकूल ढंग से प्रभावित न हो। पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री मिश्रा ने कहा कि इस विषय पर सरकार को आपत्ति भेजी जानी चाहिए और वह इसमें सभी के साथ हैं।

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आरटीआई कानून में संशोधन घातक इसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा – शैलेश गांधी

कार्यक्रम में आरटीआई कानून के पक्ष में हमेशा ही मुखर रहने वाले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि सरकार द्वारा आरटीआई कानून में दुष्प्रभावी संशोधन नहीं करना चाहिए अन्यथा इससे आरटीआई कानून कमजोर होगा और देश में भ्रष्टाचार बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में धारा 8(1)(जे) में अपवाद के नाम पर आम नागरिक को जानकारियां हासिल नहीं हो रही हैं और यदि इसको प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से कानूनी मान्यता मिल जाएगी और 8(1)(जे) को हटा दिया जाएगा तो ऐसे में 95 फीसदी से अधिक जानकारी निजी जानकारी के तौर पर लोक सूचना अधिकारी नागरिकों को देने से मना करेंगे और इससे उस जानकारी को भी वेब पोर्टल से हटाना पड़ेगा जो राजस्थान सहित देश में तमाम धारा 4 के तहत साझा की गई है क्योंकि सभी जानकारी निजी जानकारी की श्रेणी में आ जाएगी।

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डेटा बिल आवश्यक लेकिन आरटीआई कानून के साथ समझौता स्वीकार नहीं – भूपेंद्र धर्मानी

उधर हरियाणा से पधारे पूर्व राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्मानी ने भी आरटीआई कानून के पक्ष में अपने विचार रखे। पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण उन्होंने अपना अनुभव विस्तार से साझा किया और कहा की ब्यूरोक्रेसी नहीं चाहती कि कोई भी ऐसा कानून देश में रहे जिससे आम नागरिक सरकारी कामकाज और गलत ब्यूरोक्रेसी के विषय में जानकारी हासिल कर सवाल कर पाए। इसीलिए नीतिगत मामलों में अपने गलत सुझावों के माध्यम से ब्यूरोक्रेसी और लालफीताशाही सरकार में बैठे मंत्रियों और नेताओं को भ्रमित कर पूरे सिस्टम में अपना कंट्रोल जमा कर रखना चाहते हैं। जिसका नतीजा यह है कि डेटा प्रोटक्शन बिल के नाम पर आरटीआई कानून को ही अब सरकार खत्म करने पर तुली है। इस विषय पर हम सभी को अपनी तरफ से एक मसौदा तैयार कर सरकार को सुझाव के तौर पर भेजा जाना चाहिए और आरटीआई कानून में किसी भी प्रकार से दुष्प्रभावी बदलाव न किया जाए इस विषय पर लेख किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने भी एक बार पुनः आरटीआई कानून के संशोधन का विरोध किया और उन्होंने कहा कि डेटा बिल भी आवश्यक है परंतु इस बात का ध्यान दिया जाना चाहिए कि आरटीआई कानून को कमजोर न किया जाए। आत्मदीप ने विस्तार से डेटा बिल के अन्य पहलुओं पर भी चर्चा की और यह भी बताने का प्रयास किया कि वर्तमान नेटवर्किंग के चुनौती में अपने डेटा को संरक्षित करना भी हमारी और सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए कई मायनों में डेटा बिल आवश्यक है परंतु किसी दूसरे कानून और खास तौर पर पारदर्शिता के सबसे महत्वपूर्ण कानून आरटीआई के एवज में बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार कैलाश सनोलिया ने भी अपने विचार व्यक्त किया और कहा की प्रस्तावित डेटा बिल के माध्यम से आरटीआई कानून में संशोधन किया जाता है तो इससे पत्रकारिता पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा और जो जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाया करती थी और तथ्यात्मक एवं खोजी पत्रकारिता के नाम पर प्रकाशित किया जाकर भ्रष्टाचार उजागर किया जाता था ऐसे में स्वाभाविक तौर पर वह जानकारी हमें हासिल नहीं हो पाएगी जिससे पत्रकारिता मात्र नेताओं की चाटुकारिता, लोकार्पण और सरकारी प्रचार प्रसार तंत्र का एक हिस्सा बन कर रह जाएगी और शायद सरकार यही चाहती हैं।

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