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पुलिस से संबंधित प्रश्न और आरटीआई विषय पर पूर्व पुलिस महानिदेशक शैलेंद्र श्रीवास्तव ने भी रखे अपने विचार

116 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार में वर्चुअल कोर्ट एक्शन प्लान पर हुई चर्चा

कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद गुजरात से राज्यसभा सांसद अमीबेन याज्ञनिक एवं पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी नेवी किया संबोधित 

कोरोना काल से निरंतर ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किए जाने वाले राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चर्चा का दौर निरंतर जारी है। इसी तारतम्य में इस रविवार सुबह 11:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक वर्चुअल कोर्ट को लेकर इसके एक्शन प्लान पर चर्चा की गई जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में गुजरात से हाई कोर्ट अधिवक्ता एवं राज्यसभा सांसद अमीबेन याज्ञनिक, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, नेशनल फेडरेशन आफ सोसायटी फॉर फास्ट जस्टिस के चेयरमैन डॉ राजेंद्र कचरू, सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल, पूर्व लॉ प्रिंसिपल अश्विन करिया, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप सहित कई गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के अगले दौर में दोपहर लगभग 12:00 बजे से लेकर 2:00 के बीच में मध्य प्रदेश में परिवहन आयुक्त एवं विभिन्न जिलों में पुलिस अधीक्षक पुलिस महा निरीक्षक आदि पदों पर पदस्थ रहे मध्यप्रदेश के पूर्व महानिदेशक हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन शैलेंद्र श्रीवास्तव ने भी पुलिस और आरटीआई से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला और उपस्थित पार्टिसिपेंट्स के प्रश्नों के जवाब दिए।

वर्चुअल सुनवाई एक सच्चाई परंतु विभिन्न स्तर पर रिफार्म को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता – राज्यसभा सांसद अमीबेन याज्ञनिक

कोविड-19 के दौरान वर्चुअल सुनवाई और ऑनलाइन माध्यमों से मीटिंग का सिलसिला जारी हुआ तो सवाल यह पैदा हुआ कि क्या न्यायिक और अर्ध न्यायिक व्यवस्थाओं में भी इस पद्धति को लागू कर देश के विभिन्न न्यायालयों में पड़े करोड़ों केसों का समाधान निकाला जा सकता है? इसी विषय को लेकर विभिन्न स्तर पर चर्चाएं तेज हुई और आज स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट में वर्चुअल कोर्ट को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, पूर्व सूचना आयुक्तों और गणमान्य नागरिकों के द्वारा जनहित याचिकाएं भी दायर की जा चुकी हैं जिनकी सुनवाईयों का दौर चल रहा है। इसी बात को लेकर गुजरात से वर्तमान राज्यसभा सांसद एवं हाई कोर्ट गुजरात की वरिष्ठ अधिवक्ता अमीबेन याज्ञनिक ने अपने विचार रखे और कहा वर्चुअल कोर्ट एक सच्चाई है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए वर्चुअल कोर्ट पेंडेंसी का पूरी तरह से समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले ज्यूडिशरी एडमिनिस्ट्रेशन और पुलिस विभाग में रिफॉर्म करने पड़ेंगे तभी हमें इसका सही लाभ प्राप्त हो पाएगा उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें न्यायालयों और जजों की संख्या पर भी विचार करना चाहिए और फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग को मजबूती से रखना पड़ेगा। उन्होंने कहा वर्चुअल हाइब्रिड कोर्ट एक बेहतर व्यवस्था है और इसकी माग हाईएस्ट स्तर पर की जानी चाहिए और सबको मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आज न्यायिक व्यवस्था मात्र चंद पहुंच वाले लोगों की कठपुतली बन कर रह गई है जिन जिन की पिटीशन जल्द लग जाती है और जल्द सुनवाई हो जाती है लेकिन यदि एक गांव का गरीब आदमी न्याय की उम्मीद रखें तो उसके लिए यह असंभव सा दिखने वाला कार्य है। परंतु यदि ऑनलाइन सुनवाई प्रारंभ हो जाती है तो ऐसे में एक आम नागरिक भी मोबाइल और युट्यूब के माध्यम से अपने केस की सुनवाई देख सकता है और यह जानकारी प्राप्त कर सकता है कि आखिर उसके केस में उसके मुवक्किल के द्वारा क्या तथ्य और जिरह की जा रही है।

आज की न्याय व्यवस्था मात्र चंद अमीर लोगों की कठपुतली, आम आदमी न्याय की पहुंच से बहुत दूर इसलिए चाहिए वर्चुअल सुनवाई – पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी

वहीं मामले पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता जाहिर की और कहा कि वर्चुअल कोर्ट कागजों के बोझ से बचा जा सकता है और वर्चुअल कोर्ट देश के विभिन्न न्यायालयों में करोड़ों की संख्या में पेंडिंग पड़े हुए प्रकरणों का एक बेहतर समाधान होगा। उन्होंने कहा कि आज कोर्ट की व्यवस्था मात्र खास लोगों के लिए बन गई है और आम नागरिक अपने आप को ठगा महसूस कर रहा है। जब तक एक सुदूर ग्राम में बैठे हुए गरीब से गरीब व्यक्ति को न्याय प्राप्त नहीं होता है और शीघ्र सुनवाई नहीं होती तब तक हमारे इस न्यायालय व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने एक बार पुनः वर्चुअल कोर्ट के पक्ष में वकालत की और इसे समय की माग बताया।

वर्चुअल कोर्ट और ऑनलाइन व्यवस्था एक विकल्प, इसके प्रयोग से व्यवस्था में होगा सुधार – डॉ राजेंद्र कचरू

इसी तरह मामले में विचार रखते हुए नेशनल फेडरेशन फॉर सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस के चेयरमैन एवं तकनीकी विशेषज्ञ डॉक्टर राजेंद्र कचरू ने बताया कि हमारे देश में समय पर न्याय नहीं मिलता है और संपूर्ण न्यायालय व्यवस्थाओं को देखा जाए तो करोड़ों की संख्या में पेंडिंग पड़े हुए प्रकरणों का समाधान अल्टरनेटिव तौर पर तकनीक का बेहतर उपयोग हो सकता है। उन्होंने कहा कि अब तक सालसा और नालसा की हेल्पलाइन नंबर 15100 का सही क्रियान्वयन ही हमारे देश में नहीं हो पाया है जो चिंता का विषय है। उन्होंने रिफार्म पर भी जोर दिया और साथ में कई बिंदुओं पर विचार रखें।

राजनीतिक दलों के प्रमुखों और संसदीय समितियों को भी भेजें पिटिशन – पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप

कार्यक्रम में पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि जब भी हम कोई पिटीशन चाहे वह ऑनलाइन हो अथवा ऑनलाइन दायर करते हैं तो हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसे जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं उनके प्रमुखों को निश्चित तौर पर एक कॉपी भेजी जाए और साथ में राज्यसभा लोकसभा एवं साथ में समस्त राज्यों की विधायिका में भी गठित की गई समितियों को भी इसके विषय में अवगत कराया जाए तभी इसका सही लाभ प्राप्त हो पाएगा क्योंकि पूरे मामले में वास्तविक तौर पर देखा जाए तो यही महत्वपूर्ण हैं और जब तक विधायिका मामले पर संज्ञान लेकर कार्यवाही नहीं करेगी तब तक बात इसी तरह से चलती रहेगी।
उन्होंने कहा कि कोई भी कानून विधायिका के माध्यम से बनाया जाता है और यदि हमारे देश के सांसद और विधायक मन में ठान लें कि पेंडेंसी कम करनी है और प्रशासनिक और न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाना है तो निश्चित तौर पर यह काम होकर होकर ही रहेगा।

वास्तविक पुलिस फिल्मी स्टाइल की सिंघम नहीं जो सब कुछ कर सके, हमारे भी दायरे हैं – पूर्व मध्य प्रदेश पुलिस महानिदेशक शैलेंद्र श्रीवास्तव

कार्यक्रम में पुलिस से जुड़े सवाल और आरटीआई विषय पर अपने विचार विस्तार से रखते हुए मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों और संभागों पर पुलिस अधीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक, परिवहन आयुक्त और आबकारी आयुक्त आदि पदों पर अपनी सेवा देने वाले और अंत में पुलिस महानिदेशक हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट कारपोरेशन शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा की भारत में 1861 के दौरान का अंग्रेजों का पुलिस अधिनियम काम कर रहा है जो अभी भी लगभग उसी तर्ज पर चल रहा है जो अंग्रेजों के कार्यकाल में चलता था। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इसमें रिफॉर्म की है लेकिन राजनीतिक पार्टियां और राजनीति से जुड़े लोग अपना हथियार बनाकर उपयोग करना चाहते हैं। उन्होंने हालांकि सरकारों की भी प्रशंसा की और बताया कि सरकारों की इच्छाशक्ति से काफी महत्वपूर्ण कार्य हो जाते हैं। उन्होंने भोजशाला आदि मामलों का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे मामले का समाधान शांति और सौहार्द पूर्ण तरीके से किया गया था। आवेदकों के द्वारा पुलिस से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूर्व पुलिस महानिदेशक से पूछे गए जिस पर उन्होंने सभी का संतोषजनक जवाब दिया।

कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल ने भी अपने विचार रखे और न्यायिक इंडेक्स पर भारत की गिरती स्थिति पर चिंता जाहिर की और साथ में पुलिस प्रताड़ना और टॉर्चर को लेकर भी प्रश्न खड़ा किए।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया

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