RTI कानून को प्रस्तावित डेटा बिल से बचाने एक बार फिर देशव्यापी आंदोलन की जरूरत – डॉ0 अरुणा राय
आंदोलनों की सफलता देश के कर्मठ युवाओं के जुड़ाव से ही संभव
डाटा बिल से आरटीआई कानून में दुष्प्रभावी संशोधन पर एकजुट हुए देश के जाने माने RTI कार्यकर्ता
सुरत,गुजरात-डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल के वर्तमान मसौदे को लेकर आरटीआई कानून में होने वाले दुष्प्रभावी संशोधन पर चर्चा का दौर जारी है। इस बीच 130 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में देश की वरिष्ठ और जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन और नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट इनफॉरमेशन की संस्थापक डॉ0 अरुणा राय रविवार 18 दिसंबर सुबह 11:00 से दोपहर 1:00 के बीच आयोजित 130 वें वेबिनार में सम्मिलित हुईं। कार्यक्रम के अन्य विशिष्ट अतिथियों के तौर पर अरुणा राय के साथ-साथ पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी, वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं आरटीआई एक्टिविस्ट भास्कर प्रभु और वीरेश बेलूर सहित देश के अन्य सामाजिक और आरटीआई क्षेत्र में काम करने वाले गणमान्य नागरिकों ने भी हिस्सा लिया।
आरटीआई कानून को बचाने के लिए एक बार फिर जन आंदोलन की आवश्यकता – डॉ अरुणा राय
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022 के वर्तमान मसौदे में आरटीआई कानून में दुष्प्रभावी संशोधन किए जाने के सरकार की मंशा को लेकर अपना विचार व्यक्त करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन और एनसीपीआरआई के सह संस्थापक और मैगसेसे अवॉर्ड विनर डॉ0 अरुणा राय ने कहा कि 1996 में सूचना के अधिकार कानून के लिए उनका आंदोलन प्रारंभ हुआ था उस समय छोटे स्तर से ही आंदोलन प्रारंभ हुआ और इसके बाद धीरे-धीरे आंदोलन एक लंबा स्वरूप ग्रहण किया तब भी लोगों में हमारे आंदोलन के प्रति इसकी जीत और हार को लेकर संदेह रहता था लेकिन आंदोलनकर्ता शक्ति और निरंतर आंदोलन में लगे रहने के चलते सफलता प्राप्त हुई और आरटीआई कानून अपने 2005 के स्वरूप में हमें मिला है।
डॉ अरुणा राय ने कहा कि यदि आरटीआई कानून को बचाए रखना है तो इसके लिए सतत आवाज उठाते रहनी पड़ेगी। और इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका युवा वर्ग की है। क्योंकि किसी भी आंदोलन को आगे बढ़ाने और उसे ऊर्जा देने का काम युवा शक्ति से ही संभव है। कार्यक्रम में उपस्थित आरटीआई कार्यकर्ताओं और युवाओं से उन्होंने आग्रह किया कि वह इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर आगे आएं और जो जहां हैं वह अपने स्तर पर निरंतर प्रयास करते रहें।
कार्यक्रम में विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई और उपस्थित सभी विशेषज्ञों और मुख्य अतिथियों ने अपनी अपनी बातें रखें। मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) का पहले ही बहुत दुरुपयोग हो रहा है और यदि उसे हटाया जाता है तो फिर आम नागरिक को जानकारी मिलना लगभग असंभव हो जाएगा। वहीं पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने एक बार पुनः सरकार की नीतियों के विरुद्ध मोर्चा खोलते हुए कहा कि सरकार आरटीआई कानून को खत्म कर पारदर्शिता और जवाबदेही को समाप्त करना चाहती है जो हमारे लोकतांत्रिक समाज के लिए अच्छा नहीं है। कार्यक्रम में वरिष्ठ आरटीआई कार्यकर्ता भास्कर प्रभु एवं वीरेश बेल्लूर ने भी प्रस्तावित डाटा बिल को लेकर चिंता जाहिर की और इसके विरोध में खड़े होने की बात कही है। पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने ऐतिहासिक पहलुओं पर गौर करते हुए कहा कि आरटीआई कानून को 2005 के स्वरूप में लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी है और न केवल सामाजिक क्षेत्र के व्यक्ति बल्कि पत्रकारिता से जुड़े हुए महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा काफी महत्वपूर्ण समय दिया है तब जाकर हमे यह कानून प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि वर्तमान प्रस्तावित डेटा बिल के मसौदे को लागू कर दिया जाता है तो जानकारी तो मिलना मुश्किल हो जाएगा और इसके साथ साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बुरा प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार उपस्थित आरटीआई और सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए प्रस्तावित डाटा बिल के मसौदे को सरकार वापस ले और आरटीआई कानून में किसी भी प्रकार से संशोधन न करें इस बात को लेकर आवाज उठाई है और आगे भी आंदोलन करने की बात कही है
22 से अधिक भाषाओं वाले देश में किसी बिल को मात्र अंग्रेजी भाषा में इंटरनेट में अपलोड किया जाना अंग्रेजी राज्य की निशानी
कार्यक्रम में पधारी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अरुणा राय ने कहा कि आज देश में 22 से अधिक भाषाएं हैं और सैकड़ों बोलियां हैं ऐसे में आज के लोकतांत्रिक समाज में यदि कोई भी कानून मात्र अंग्रेजी भाषा में लाकर वेब पोर्टल पर रख दिया जाता है तो उसका लाभ मात्र उंगली में गिने-चुने लोग ही प्राप्त कर सकते हैं। हमारे देश में अभी भी लोगों में अंग्रेजी के प्रति इतनी अच्छी समझ नहीं है और नागरिकों को उनकी बोलियों और भाषाओं में सरल तौर पर किसी भी बिल के विषय में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए तब जाकर कोई भी बिल सार्थक होगा और उसकी क्लिष्ट भाषा उन्हें समझ में आयेगी। क्लिष्ट शब्दों में अंग्रेजी भाषा में बिल को मात्र वेब पोर्टल पर अपलोड कर कम समय में फीडबैक मांगे जाने से सरकार की पारदर्शिता के प्रति नकारात्मक सोच और कानून को खत्म करने की साजिश समझ में आती है।