पुलिस विभाग में किसी भी प्रकार की शिकायत/फरियाद देने के बाद गिरफ्तारी के बाद मानव अधिकार का हनन न हो इस लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यह निर्देश दिए गए हैं जिसमें स्पष्टीकरण किया गया हैं की इन अधिकारों का उल्लंघन नागरिक की स्वतंत्रता पर हमला होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के संबंध में 11 महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए हैं, जिन्हें ‘डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल’ मामले में निर्धारित किया गया था। ये दिशा-निर्देश गिरफ्तारी के दौरान और बाद में गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए हैं.
D.K. Basu बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, Joginder Kumar, Lalita Kumari, और Arnesh Kumar जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश पुलिस के गिरफ्तारी अधिकारों के अनुचित उपयोग के खिलाफ आवश्यक सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन फैसलों ने बार-बार यह रेखांकित किया है कि गिरफ्तारी केवल तभी की जानी चाहिए जब इसकी सख्त आवश्यकता हो और यह पारदर्शिता, उचित दस्तावेज़ीकरण और जवाबदेही के साथ की जानी चाहिए। ये ऐतिहासिक फैसले पुलिस के आचरण को दिशा देने और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि गिरफ्तारियां कानूनन और मानवीय ढंग से की जाएं, जिससे अनावश्यक हिरासत में मौतें रोकी जा सकें और भारतीय न्याय प्रणाली में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके।
अदालत ने प्रमुख मामलों जैसे D.K. Basu बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, Joginder Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, Nilabati Behera बनाम ओडिशा राज्य, और Lalita Kumari बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश:
- पुलिस अधिकारी की पहचान: हर पुलिस अधिकारी जो गिरफ्तारी करता है, उसे स्पष्ट और दिखाई देने वाले नाम टैग के साथ अपनी पहचान और पदनाम दर्शाना आवश्यक है। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है, जिससे किसी भी गलत आचरण की स्थिति में अधिकारी की पहचान करना आसान हो जाता है।
- गिरफ्तारी मेमो (Memo): गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी को एक गिरफ्तारी मेमो तैयार करना होता है। यह मेमो गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा और एक गवाह (जिसमें परिवार का कोई सदस्य या कोई स्थानीय व्यक्ति हो सकता है) द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए। मेमो में गिरफ्तारी का समय और दिनांक भी शामिल होना चाहिए।
- रिश्तेदारों या दोस्तों को सूचना देने का अधिकार: गिरफ्तार व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने रिश्तेदार, मित्र, या किसी अन्य संबंधित व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी और हिरासत की जगह के बारे में जानकारी दे सके। यदि गिरफ्तारी के समय कोई परिवार का सदस्य या मित्र गवाह के रूप में उपस्थित है, तो यह सूचना आवश्यक नहीं होती।
- डायरी में एंट्री: गिरफ्तारी का समय, स्थान, और गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी का विवरण पुलिस डायरी में दर्ज होना चाहिए। इससे हर गिरफ्तारी का उचित दस्तावेज़ीकरण सुनिश्चित होता है।
- मेडिकल जांच: गिरफ्तार व्यक्ति का गिरफ्तारी के समय चिकित्सकीय परीक्षण किया जाना चाहिए। किसी भी चोट का विवरण रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, और हिरासत में रहते हुए व्यक्ति का हर 48 घंटे में एक डॉक्टर द्वारा परीक्षण किया जाना चाहिए।
- दस्तावेज़ों की प्रतियां मजिस्ट्रेट को भेजना: सभी दस्तावेज़, जिनमें गिरफ्तारी मेमो भी शामिल है, इल्लाका मजिस्ट्रेट (Illaqa Magistrate) को रिकॉर्ड के लिए भेजे जाने चाहिए। यह गिरफ्तारी की वैधता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
- वकील से मिलने का अधिकार: गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान वकील से मिलने का अधिकार है, हालांकि वकील पूछताछ के समय हर समय उपस्थित नहीं हो सकता।
- पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना देना: हर जिले में एक पुलिस कंट्रोल रूम होना चाहिए, जहां गिरफ्तारी की सूचना 12 घंटे के भीतर अपडेट की जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हिरासत की जगह का पता सभी को हो, जिससे गुप्त गिरफ्तारी या अवैध हिरासत से बचा जा सके।
- इन दिशा-निर्देशों ने गिरफ्तारी की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की, और अनावश्यक हिरासत में मौतों को रोकने में मदद की।
सुप्रीम कोर्ट के 11 निर्देश _ गिरफ्तारी को ले कर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा –
गिरफ्तारी में व्यक्ति के अधिकारों का पालन जरूरी है।
कोर्ट ने 11 निर्देश दिए –
1️⃣ गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी की पहचान साफ होनी चाहिए।
2️⃣ गिरफ्तारी का मेमो बनेगा, गवाह और गिरफ्तार व्यक्ति के हस्ताक्षर होंगे।
3️⃣ परिवार या मित्र को तुरंत सूचना देना अनिवार्य है।
4️⃣ गिरफ्तारी की सूचना रिकॉर्ड में दर्ज होगी।
5️⃣ गिरफ्तार व्यक्ति को मेडिकल जांच का अधिकार होगा।
6️⃣ हर 48 घंटे में मेडिकल परीक्षण अनिवार्य होगा।
7️⃣ गिरफ्तारी के स्थान की जानकारी स्थानीय पुलिस कंट्रोल रूम को दी जाएगी।
8️⃣ गिरफ्तार व्यक्ति को वकील से मिलने का अधिकार होगा।
9️⃣ गिरफ्तारी की सूचना जिला और राज्य स्तर पर कंट्रोल रूम में भेजी जाएगी।
🔟 केस डायरी में हर जानकारी दर्ज होगी।
1️⃣1️⃣ मैजिस्ट्रेट को सभी नियमों के पालन की पुष्टि करनी होगी।
फैसले में कहा गया –
“इन अधिकारों का उल्लंघन नागरिक की स्वतंत्रता पर हमला होगा।”*
कानूनी सलाहकार
D.K. Basu बनाम State of West Bengal, Writ Petition (Crl.) No. 592/1987
Legal Ambit
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यह भी इस मुद्दे पर काम की नजीर है |
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