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जाने क्या है समन्वय समिति।

जिले के बुजुर्गों के हित मे प्रशासन या समाज कल्याण विभाग को जो कार्य करना होता है उसको क्यों नही कर रहा है? वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े एक महत्वपूर्ण अधिनियम ” माता पिता व वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 “ की जिले मे अधिनियम बनने के एक दशक से अधिक हो गए तो भी कोई पालना नही हुई है । जिला कलेक्टर महोदय जी की अध्यक्षता मे बनने वाली जिला समन्वय संमिति साल मे एक दिन विश्व वृद्ध दिवस को महज खानापूर्ति के लिए बुजुर्गों का अभिनंदन कर दिया जाता है पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने एक भी वरिष्ठ नागरिक की मदद नही की ?? इस अधिनियम का किसी भी प्रकार से कोई भी प्रचार प्रसार नही किया और ना ही वरिष्ठ नागरिकों को जानकारी दी ??

ऐसे समझिये क्या है जिला समन्वय समिति, उसके नियम , क्यों जरूरी है और क्या काम आता है!

1-भारत सरकार ने 29 दिसम्बर 2007 को यह अधिनियम बना दिया था । और राजस्थान सरकार ने 18 जून 2010 को राजपत्र जारी कर सभी विभागों को आदेश जारी किए ।

2-अधिनियम के तहत कोई भी वरिष्ठ नागरिक या माता पिता जो स्वयं की सम्पत्ति आय से अपना भरण पोषण करने मे असमर्थ हो और उसकी संपत्ति के वारिश उनको मूलभूत सुविधा नही दे रहा है तो वरिष्ठ नागरिक या माता पिता इस एक्ट के तहत अपनी सम्पति के वारिशों से भरण पोषण या मासिक खर्चा ले सकते है ।

3-इस एक्ट के तहत वरिष्ठ नागरिकों को भरण पोषण अधिकारी को अपनी एक शिकायत देनी होती है । भरण पोषण व सुनवाई अधिकारी एक माह मे वरिष्ठ नागरिकों के मामले की सुनवाई करता है और शिकायत सही पाने पर सम्पति के वारिसों को मासिक खर्चे के लिए आदेश देते है ।

4-इस अधिनियम के तहत वरिष्ठ नागरिकों या माता पिता को सम्पूर्ण कानूनी मदद या फाइल प्रक्रिया के लिए अधिकारी जिम्मेदारी होती है जो निशुल्क उपलब्ध करायी जाती है और मुफ्त कानूनी मदद दी जाती है ।

5-कई बार बुजुर्गो से उनके वारिस धोखे से उनकी संपत्ति अपने नाम कर लेते है तो इस अधिनियम के तहत वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति वापिस ले सकते है ।

6-इस कानून के अंतर्गत भारतीय संविधान हर नागरिक को यह सूचित करता है कि किसी भी वरिष्ठ नागरिक , माता-पिता की जिम्मेदारी उनके उत्तराधिकारी या उनके बच्चों को उठानी होगी, उनकी उपेक्षा या अवमानना करने वाले को ₹5000 का जुर्माना या 3 माह की कैद होगी

किसको क्या करना था

1-कलेक्टर कार्यालय से जिला समन्वय समिति बननी थी।:-

इसकी अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट और पदेन सदस्य के लिए जिला समाज कल्याण अधिकारी, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, जिला अस्पताल का प्रभारी अधिकारी, जिला जन सम्पर्क अधिकारी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद चुने जाते । सदस्य के लिए जिला कलेक्टर उन सदस्यो को चुनते जो वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण से जुड़े हो । इस समिति की हर तीन माह मे मीटिंग होती ।

2 पुलिस कार्यालय:-

पुलिस थाने मे वरिष्ठ नागरिकों की एक सूची बनानी होती है । वरिष्ठ नागरिकों ओर माता पिता के विरुद्द कारित अपराधों के संबंधो मे पृथक रजिस्टर , प्रगति रिपोर्ट जिला समन्वय समिति को देनी होती है । थाने मे एक अलग समिति का गठन किया जाता है जो वरिष्ठ नागरिकों , पुलिस और प्रशासन के मध्य संवाद का कार्य करती है । पुलिस थाने से एक कार्मिक एक समाजसेवी को साथ ले जाकर खासकर उन वरिष्ठ नागरिकों से मिलेगा जो अकेले रहते है । हर थाने मे हेल्प डेस्क स्थापित होना था ।

3 समाज कल्याण विभाग :-

सबसे अधिक जिम्मेदारी इसी विभाग को दी हुई है । इसको बुजुर्गों के हित की सभी योजनाओं को देखना होता है ।

4 मुख्य चिकित्सा एव स्वाथ्य अधिकारी :-

अधिनियम मे इस विभाग को अलग से सुविधा देने के लिए प्रावधन है मगर निदेशक के निर्देश के बाद भी इस विभाग भी उदासीनता दिखा रहा है।

इस समन्य समिति पर लेखन कार्य और प्रकशित महावीर पारीक,सीईओ & फॉउंडर, लीगल अम्बिट www.legalambit.org

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