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बार काउंसिल और वकीलों की स्ट्राइक गैरकानूनी – प्रोफेसर अश्विन कारिया

न्यायालयों में पेंडिंग पड़े प्रकरणों को लेकर आयोजित हुआ 140 वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबिनार

मप्र हाईकोर्ट चीफ जस्टिस द्वारा पेंडिंग मामलों को लेकर जल्दी सुनवाई के आदेश पर वकीलों के लामबंद हड़ताल को लेकर देश के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने रखे विचार

क्या देश के विभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन दशकों पुराने मामले का निपटारा करने में वकील बाधा बन रहे हैं? क्या अभी हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस द्वारा दिए गए आदेश जिसमें उनके द्वारा यह कहा गया कि दशकों पुराने मामलों को प्रतिमाह उठाया जाकर तीन-तीन माह की समय सीमा के भीतर निपटारा किया जाए उचित नहीं है? क्या पूरे देश भर के न्यायालयों में 5 करोड़ से अधिक पेंडिंग पड़े मामलों और निरंतर बढ़ती संख्या को लेकर देश की जनता के प्रति सरकार, न्यायाधीशों और वकीलों की जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए? क्या मामलों के जल्द निपटारे से याचिकाकर्ताओं को न्याय नहीं मिलेगा? इन्हीं विषयों को लेकर प्रत्येक रविवार आयोजित होने वाले 140 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे गुजरात पालनपुर से लॉ कॉलेज के प्राचार्य अश्विन कारिया, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पटेल, मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, बैंगलोर कर्नाटक से वरिष्ठ अधिवक्ता एम राघवन, फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक वेंकटरमन सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कार्यक्रम में अपने विचार रखे।

बार काउंसिल और अधिवक्ताओं की हड़ताल गैरकानूनी – अश्विन कारिया

अश्विन कारिया

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे गुजरात पालनपुर से लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य अश्विन कारिया ने बताया कि देश में पेंडेंसी निरंतर बढ़ रही है और न्यायालयों में विचाराधीन प्रकरण लगभग 5 करोड़ से ऊपर पहुंचने वाले हैं। ऐसी स्थिति में देश में नागरिकों को सस्ता, सुलभ और जल्दी न्याय कैसे मिले यह एक विचारणीय बात है। उन्होंने दशकों पुराने पेंडिंग मामलों को लेकर चिंता जाहिर की और कहा कि इसमें सरकार न्यायालय और बार काउंसिल सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। और लोगों को शीघ्र, सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध करवाए जाने की जरूरत है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस के अभी हाल ही के एक आदेश जिसमें उन्होंने यह कहा कि पुराने मामलों को प्रतिमाह खोला जाकर 90 दिन की समयसीमा के भीतर निपटारा किया जाना चाहिए और जिसके बाद भोपाल सहित आसपास के कई जिलों में जिला न्यायालय और उनके अधीनस्थ न्यायालय के अधिवक्ताओं ने हड़ताल प्रारंभ कर दी है इस विषय पर उन्होंने कहा कि पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बार काउंसिल और अधिवक्ता हड़ताल पर नहीं जा सकते और यह उनका लीगल राइट नहीं है। उन्होंने कहा कि बार काउंसिल और अधिवक्ताओं का स्ट्राइक करना पूरी तरह से नियम विरुद्ध और गैरकानूनी है। इससे पूरी न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है और पेंडेंसी आगे बढ़ती जाती है।

कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने पेंडिंग मामलों को लेकर कई पहलुओं पर की चर्चा

इस बीच कार्यक्रम में पधारे अन्य विशिष्ट अतिथियों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने वकीलों द्वारा की जाने वाली हड़ताल को लेकर कहा कि यह पूरी तरह से गैरकनूनी है और उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जल्दी और सुलभ न्याय दिलवाए जाने में वकील बड़ी बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकतर देश में 90 प्रतिशत केस मात्र 10 प्रतिशत वकीलों को मिलते हैं वहीं 10 प्रतिशत केस 90 प्रतिशत अन्य वकीलों में वितरित होते हैं। ऐसे में जो वकील ज्यादा केस लिए हैं वह चाहते हैं कि मामला लंबे चलते रहें। इसीलिए केसों का निपटारा जल्दी नहीं होने देना चाहते और इस पूरे प्रकरण में मात्र कुछ ही ऐसे अधिवक्ता हैं जो सम्मिलित हैं परंतु दबाव बनाकर निचले स्तर के अधिवक्ताओं को भी इस प्रकार हड़ताल करने और विरोध करने के लिए मजबूर करते हैं। उन्होंने आगे कहा की यदि देश के नागरिकों को सस्ता सुलभ और शीघ्र न्याय दिलवाना है तो वकीलों को वरिष्ठ न्यायालयों के शीघ्र सुनवाई के आदेशों का सम्मान करना चाहिए और उसका विरोध बिल्कुल नहीं करना चाहिए। उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ताओं की मंशा पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा कि कब-कब ऐसा हुआ है जब यही वकील और बार काउंसिल के लोग जनता की भावनाओं के साथ खड़े हुए हैं? उन्होंने कहा कि क्या कभी बार काउंसिल और वरिष्ठ अधिवक्ता इस बात के लिए स्ट्राइक अथवा हड़ताल किए हैं कि आखिर आम जनता को न्याय जल्दी क्यों नहीं मिल पा रहा है और क्यों दशकों पुराने मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं?

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और नेशनल फेडरेशन फॉर सोसायटी फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक और जनरल सेक्रेटरी प्रवीण पटेल


विषय पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और नेशनल फेडरेशन फॉर सोसायटी फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक और जनरल सेक्रेटरी प्रवीण पटेल ने जल्दी न्याय पर जोर दिया और बताया कि देश में विभिन्न न्यायालयों में बढ़ते हुए प्रकरण चिंता का विषय हैं। उन्होंने न्यायालयों को प्रतिवर्ष आवंटित किए जाने वाले काफी कम बजट पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि हम निरंतर वित्त मंत्रालय और सरकार को बजट बनाने के पूर्व कई तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं लेकिन इसके बावजूद भी सरकार द्वारा न तो इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है और न ही जजों की नियुक्ति की जा रही है जिससे जल्दी न्याय कैसे मिल पाएगा यह अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न है। ग्राम न्यायालय, विधिक सेवा, पैरा जुडिशल वालंटियर जैसे कई मामलों पर उन्होंने खुलकर बात रखी और कहा की कानूनी पढ़ाई से लेकर संपूर्ण कानूनी प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने कहा की सरकार और कोर्ट को वकीलों की समस्या को भी देखना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हर तरफ नकारात्मक माहौल है और वकीलों की समस्या यह है कि क्योंकि उनकी भी बात को सुना नहीं आता इसलिए वह स्ट्राइक पर जाते हैं। हालांकि नित्यानंद ने अच्छे सुशिक्षित वकील, न्यायाधीश और कानूनी शिक्षा को बेहतर बनाए जाने और निरंतर ट्रेनिंग दिए जाने की बात कही। उन्होंने कहा कि देश में जल्दी, सस्ता और सुलभ न्याय सभी को मिले इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की। उन्होंने कहा कि कोर्ट केस में पेंडेंसी का कारण मात्र वकील नहीं है बल्कि इसके पीछे न्यायालय और सरकार स्वयं ही जिम्मेदार है। नित्यानंद ने कहा कि हाईकोर्ट की बात करें तो वहां पर दशकों से मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं जिसमें आज तक सरकार के द्वारा समय पर जवाब तक प्रस्तुत नहीं किए गए हैं यह सब काफी चिंता का विषय है।
इसी प्रकार कार्यक्रम में फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के संयोजक वेंकटरमण ने भी कहा कि सभी को सुलभ और जल्दी न्याय मिले इसके लिए हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं और अपनी संस्था के माध्यम से भी सरकार को आगाह करते रहते हैं। बेंगलुरु कर्नाटक से वरिष्ठ अधिवक्ता एम राघवन ने भी विषय पर अपने विचार रखे और उपस्थित प्रतिभागियों के प्रश्नों के जवाब भी दिए।


कार्यक्रम में पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर छत्तीसगढ़ से कार्यकर्ता देवेंद्र अग्रवाल ने भी प्रश्न खड़े किए और कहा कि पुलिस एफआईआर दर्ज कर अपनी जवाबदेही से फुर्सत हो जाती है और आईपीसी, सीआरपीसी और सीपीसी के तहत कार्यवाही नहीं करती है। उन्होंने धारा 439 और 482 के तहत हाईकोर्ट में लगाई जाने वाली याचिकाओं पर अपनी आपबीती सुनाते हुए अपने विचार रखे और कहा कि कोर्ट मामलों पर सही तरीके से संज्ञान नहीं लेती हैं जिसकी वजह से मामले ट्रायल में चले जाते हैं। देवेंद्र अग्रवाल ने कहा कि कोर्ट को याचिकाकर्ता के तथ्यों को भी सुनना चाहिए और निपटारा करना चाहिए।

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