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बरेली कोर्ट ने माना- सहमति से बनाए शारीरिक सम्बंध रेप नहीं

3 बच्चों की मां ने 35साल की उम्र में साल 2019 में रेप का केस दर्ज कराया था.

कोर्ट ने रेप केस में युवक को बाइज्जत बरी किया

उ.प्र.-बरेली,झूठे मुकदमों में फंसे निर्दोष युवकों के लिए नजीर बन सकती है। अदालत ने दुष्‍कर्म मामले में बयान से मुकरने वाली युवती को उतने ही दिन जेल में रहने की सजा सुनाई है जितने दिन तक आरोपी युवक कैद में रहा। साथ ही उस पर पांच लाख 88 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है जो निर्दोष को बतौर मुआवजा दिया जाएगा। कोर्ट ने सजा सुनाते हुए कड़ी टिप्‍पणी की है।

बरेली के कर्मचारी नगर की रहने वाली 34 साल की महिला के तीन बच्चे हैं। आरोप है कि महिला के शिवम से संबंध थे और 2016-2019 तक चले। इस पूरे मामले में महिला ने शिवम पर आरोप लगाया कि उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ 3 साल तक दुष्कर्म किया। 2019 में महिला ने प्रेमनगर थाना में रिपोर्ट दर्ज कराई। मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने युवक को जेल भेज दिया।

अदालत ने कहा कि दुष्‍कर्म जैसे जघन्‍य अपराध में फंसाने के लिए युवती ने सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून का दुरुपयोग किया। इस कानून के तहत आरोपी को आजीवन कारावास तक की सजा मिल सकती थी।

झूठे मुकदमे की वजह से अजय को जेल में 1653 दिन (चार साल छह महीने और आठ दिन) बिताने पड़े। वह 2019 से आठ अप्रैल, 2024 तक जेल में रहा। जज ने आरोपी युवती को 1653 दिनों तक कैद की सजा सुनाई है। यह पूरा मामला 2019 का है। अजय कुमार पर आरोप लगा कि उन्‍होंने अपने साथ काम करने वाले सहयोगी की 15 साल की बहन का अपहरण कर रेप किया। नाबालिग ने पुलिस और कोर्ट को दिए बयान में बताया कि उसके साथ अजय ने दुष्‍कर्म किया।

लड़की के झूठ की वजह से एक निर्दोष व्‍यक्ति को जीवन के बहुमूल्‍य साढ़े चार साल जेल में बिताने पड़े। झूठी गवाही के आधार पर युवक को उम्रकैद की सजा हो सकती थी। आरोपी को जेल में रहने का कलंक झेलना पड़ा। कोर्ट ने झूठा बयान देने वाली लड़की को 1653 दिनों की सजा सुनाई है। पांच लाख 88 हजार का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना न देने पर उसे छह महीने और जेल में काटने होंगे।

फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज ने क्या कहा?

झूठे मुकदमे की वजह से अजय को जेल में 1653 दिन (चार साल छह महीने और आठ दिन) बिताने पड़े। वह 2019 से आठ अप्रैल, 2024 तक जेल में रहा।

जज ने आरोपी युवती को 1653 दिनों तक कैद की सजा सुनाई है। 

फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज ने क्या कहा?

पूरे मामले में स्पेशल जज फास्ट ट्रैक कोर्ट रवि कुमार दिवाकर का कहना है कि फेयर इन्वेस्टिगेशन न केवल वादी मुकदमा बल्कि अभियुक्त का भी मौलिक अधिकार है. न्यायालय पर वादी मुकदमा और अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करने की संपूर्ण जिम्मेदारी है. यदि वादी मुकदमा या पुलिस की ओर से अधिकारों का दुरुपयोग किया जाता है और अभियुक्त को गलत केस में फंसाया जाता है तो वादी मुकदमा एवं पुलिस को निश्चित रूप से दंडित करना चाहिए. प्रश्नगत मामले में पुलिस की ओर से निश्चित रूप से सत्य और निराधार आरोप पत्र दाखिल कर अधिकारों का दुरुपयोग किया गया है.

झूठे मुकदमे की वजह से अजय को जेल में 1653 दिन (चार साल छह महीने और आठ दिन) बिताने पड़े। वह 2019 से आठ अप्रैल, 2024 तक जेल में रहा। जज ने आरोपी युवती को 1653 दिनों तक कैद की सजा सुनाई है। 

कोर्ट ने इस मामले में विवेचना करने वाले दरोगा, प्रेमनगर थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर और सर्किल के सीओ पर कार्रवाई के लिए एसएसपी को आदेश दिया है।

फैसला सुनाने वाले जज रवि कुमार दिवाकर की कोर्ट ने 31अगस्त को सुनाया। कोर्ट ने कहा कि सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध रेप की श्रेणी में नहीं आते हैं।

साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि तीन बच्चों की मां शादी के झांसे में कैसे आ सकती है। महिला बालिग है। और हिंदू धर्म में महिला का तलाक नहीं हुआ है और वह शादीशुदा है। बरेली, गाजियाबाद व मुरादाबाद के होटल में ले जाकर महिला को साथ रखा तो महिला पत्नी की तरह रही।

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दो महीने बाद केस दर्ज कराने पर भी संदेह

घटना के एक साल दो माह बाद प्राथमिकी लिखाना भी संदेह कोर्ट ने कहा है कि सबसे ज्यादा संदेह यह पैदा करता है कि घटना के एक साल दो माह बाद मामले में प्राथमिकी क्यों लिखवाई गई जबकि, इस तरह की घटना में तत्काल प्राथमिकी लिखाई जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि इतने समय में बढ़-चढकर तहरीर लिखने का समय मिल जाता है। संभवता इसीलिए लिखाई गई। इसी के साथ कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यदि कोई महिला घर से चार-पांच घंटे गायब रहती है तो परिवार वाले जरूर पूछते हैं कि इतनी देर कहां लगी? मगर इनके परिवार वालों ने नहीं पूछा? सबसे जरूरी कोर्ट में महिला यह भी नहीं बता पाईं कि उसके साथ किन-किन नए लोगों ने दुष्कर्म किया। वीडियो की भी सत्यता नहीं मिली। 

पुलिस की विवेचना पर उठे कई सवाल

बरेली पुलिस की विवेचना पर जुलाई माह में भी सवाल उठे। जब फर्जी तरह से धर्म परिवर्तन के मामले में कोर्ट ने दरोगा, थाना प्रभारी और सर्किल के सीओ पर कार्रवाई के आदेश दिए। इसमें एक युवक को 40 दिन तक जेल जाना पड़ा।

अब प्रेमनगर थाने की पुलिस की विवेचना पर कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। बरेली की अदालत में बरेली पुलिस प्रशासन की ओर से आरोपी की विवेचना में पुलिस तथ्यात्मक साक्ष्य जुटाये बगैर चार्जशीट लगा देती है।

मेडिकल में शरीर में कहीं खरोंच के निशान नहीं थे, घटना के समय पहने कपड़ों को वह धो चुकी थी। साइबर सेल ने वीडियो की जांच की तब पता चला कि वह उसके पति के मोबाइल फोन से अपलोड किया गया था, जो कि बाद में डिलीट भी कर दिया गया।

वीडियो में महिला उन दोनों युवकों का विरोध नहीं कर रही, बल्कि सहमति प्रतीत हो रही। अश्लील वीडियो आरोपित युवकों से नहीं बल्कि महिला के पति के मोबाइल फोन से प्राप्त हुआ। इन सभी तथ्यों का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा कि अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मुकदमा कराया गया।


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