ठेकेदारों ने अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से उन कामों के दस्तावेज और बिल तैयार कर पेमेंट ले लिया
मप्र-.इंदौर, नगर निगम में जो काम हुए ही नहीं, ठेकेदारों ने अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से उन कामों के दस्तावेज और बिल तैयार कर पेमेंट ले लिया। ऐसे एक नहीं, कई मामले हैं। ये भी साल 2022 के पहले के हैं। मास्टरमाइंड इंजीनियर अभय राठौर (अभी जेल में है) ने नगर निगम में असिस्टेंट इंजीनियरों के नाम से फर्जी फाइलें बनाईं।फर्जी वर्क ऑर्डर हुए। एग्जीक्यूटिव और सुपरवाइजिंग इंजीनियरों के साइन हुए। अपर कमिश्नर के भी फर्जी साइन हुए। फिर बिल अकाउंट विभाग में लगाए गए और यहां भी फर्जी तरीके से ही पेमेंट हो गया। यह पूरा काम ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ था। उन्होंने ड्रेनेज के कामों को लेकर फर्जी बिल दिए थे,
यह घटनाक्रम तीन साल पहले यानि के 2021 की है। मार्च यानी वो महीना, जब हर सरकारी विभाग में पेमेंट का सेटलमेंट तेजी से होता है। इस दिन ऑडिट डिपार्टमेंट के संयुक्त संचालक (जॉइंट डायरेक्टर) अनिल कुमार गर्ग ने खुद के लिए एक आदेश जारी किया। उन्होंने खुद को निचले पद यानी उप संचालक ऑडिट (डिप्टी डायरेक्टर) के पद पर नियुक्त किया।लेटर में लिखा, ‘अरुण शुक्ला इस पद से रिटायर हो गए हैं। इस पद पर मैंने खुद कार्यभार (आवासी संपरीक्षा के पर्यवेक्षण अधिकारी का चार्ज) संभाल लिया है।’
सूत्रों का कहना है कि ऐसे बेनामी न जाने कितने बिल पास हुए। जिनका फिजिकल वैरिफिकेशन हुआ भी या नहीं? इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। न ही जिस काम के बदले बिल पास किए गए, उन्हें बाद में देख पाना संभव है। 35 दिन में 1 करोड़ के 53 बिल पास हुए, लेकिन 1 करोड़ से कम राशि के सैकड़ों बिलों को भी जोड़ा जाए, तो ये आंकड़ा 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का हो जाएगा।
नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 के तहत स्थानीय निधि संपरीक्षा (रेजिडेंट ऑडिट) अधिनियम 1973 के मुताबिक संभागीय संयुक्त संचालक भुगतान वाउचर्स की नोट शीट पर साइन नहीं कर सकते। जबकि, अनिल गर्ग ने ऐसी कई नोट शीट पर साइन किए हैं। जिसके चलते यह भष्टाचार सामने आया.