Blog

राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम-2012

181 पर दर्ज शिकायत भी इसी अधिनियम के तहत शासित होती है।

प्रदेश में सुचना का अधिकार अधिनियम की तरह ही यह अधिनियम भी आमजन के लिए कारगर है। इस अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के लिए न तो वकील करने की जरूरत है और किसी सत्ता पक्ष की राजनैतिक सिफारिश की भी जरूरत नहीं है। जरूरत है तो बस जज्बे के साथ संघर्ष करने की। 181 पर दर्ज शिकायत भी इसी अधिनियम के तहत शासित होती है।
लगता है अफसरों की लालफीताशाही का शिकार हो गया है यह सक्रिय कानुन। इसलिए इस कानून एंव इसको अमल में लने की प्रक्रिया का आमजन के हितार्थ न तो व्यापक प्रचार-प्रसार नहीं हुआ और न हो रहा है। मुझे यकीन है इस कानुन का सदुपयोग करने पर सिफारिश आपको नहीं करनी पड़ेगी अपितु समझौते के लिए आपके पास राजनैतिक सिफारिशें आयेगी।
तो पेश है आमजन के हितार्थ यह कानुन~

राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम, 2012(राजस्थान अधिनियम संख्या 22, 2012 )

उद्देश्यों और कारणों का विवरण -आम आदमी की कई शिकायतें और समस्याएं शासन से जुड़ी होती हैं, जिनका समाधान सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। इसलिए यह जरूरी है कि जनता की शिकायतों और समस्याओं को सहानुभूति और जवाबदेही के साथ सुना जाए और उनका निवारण किया जाए। उचित और समय पर सुनवाई से जनता की शिकायतों का शीघ्र निपटान होता है, अगर ऐसी सुनवाई उस स्थान पर की जाए जहां से वे उत्पन्न होती हैं तो इससे आम आदमी की ऊर्जा और खर्च की बचत होती है।
इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र प्रदान करने का प्रस्ताव है कि नागरिकों की शिकायतों को उनके निकटतम स्थानों पर प्रभावी ढंग से और समयबद्ध तरीके से सुना जाए। इस उद्देश्य के लिए जन सुनवाई अधिकारियों की नियुक्ति और नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों के निपटान के लिए अधिकतम समय सीमा निर्धारित करने के प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं। जन सुनवाई अधिकारियों के आदेशों के साथ-साथ उनकी ओर से किसी भी निष्क्रियता के खिलाफ अपील के लिए भी प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं। दूसरे अपीलीय अधिकारी को दोषी जन सुनवाई अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया है। उन्हें प्रस्तावित विधेयक के तहत अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने में विफल रहने की स्थिति में जन सुनवाई अधिकारियों और प्रथम अपीलीय अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करने का भी अधिकार दिया गया है।नागरिकों को अपनी शिकायतों के निवारण में सुविधा प्रदान करने के लिए सूचना एवं सुविधा केंद्र, ग्राहक सेवा केंद्र, कॉल सेंटर, हेल्प डेस्क और जन सहायता केंद्र स्थापित करने का भी प्रावधान प्रस्तावित है। इन केंद्रों को सूचना प्रौद्योगिकी की आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित किया जाएगा ताकि नागरिकों को उनकी शिकायतों का निवारण उनके घर-द्वार पर ही शीघ्रता से मिल सके.

भारत गणराज्य के तिरसठवें वर्ष में राजस्थान राज्य विधानमण्डल द्वारा निम्नलिखित रूप में अधिनियम बनाया जाएगा:-

  1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ~ इस अधिनियम को राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम, 2012 कहा जा सकेगा।
    (2)इसका विस्तार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य पर होगा।
    (3)यह उस तारीख को लागू होगा जिसे राज्य सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करेगी।
  2. परिभाषा.
  • इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –
    (ए)- [“शिकायत” का अर्थ है किसी नागरिक या नागरिकों के समूह द्वारा राज्य सरकार या केन्द्र सरकार द्वारा राज्य में चलाई जा रही किसी नीति, कार्यक्रम या योजना से संबंधित कोई लाभ या राहत प्राप्त करने के लिए या ऐसे लाभ या राहत प्रदान करने में विफलता या देरी के संबंध में या किसी लोक प्राधिकरण द्वारा राज्य में लागू किसी कानून, नीति, आदेश, कार्यक्रम या योजना के कामकाज में विफलता या उल्लंघन से उत्पन्न किसी मामले के संबंध में लोक सुनवाई अधिकारी को किया गया कोई आवेदन, लेकिन इसमें किसी लोक सेवक, चाहे वह सेवारत हो या सेवानिवृत्त हो, के सेवा मामलों से संबंधित या किसी ऐसे मामले से संबंधित जिसमें किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण का क्षेत्राधिकार हो या किसी अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के समक्ष लंबित किसी अपील से संबंधित शिकायत शामिल नहीं है;] [2014 के अधिनियम संख्या 2 द्वारा प्रतिस्थापित, दिनांक 26.2.2014।]
    (बी)- “सुनवाई का अधिकार” से अभिप्राय है, शिकायत पर निर्धारित समय-सीमा के भीतर नागरिकों को प्रदान किया गया सुनवाई का अवसर तथा शिकायत पर सुनवाई में लिए गए निर्णय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार;
    (सी)-“लोक सुनवाई अधिकारी” से तात्पर्य धारा 3 के अंतर्गत अधिसूचित लोक सुनवाई अधिकारी से है;
    (डी)-“सूचना एवं सुविधा केन्द्र” से तात्पर्य धारा 5 के अंतर्गत स्थापित सूचना एवं सुविधा केन्द्र से है, जिसमें ग्राहक सेवा केन्द्र, कॉल सेंटर, सहायता डेस्क और जन सहायता केन्द्र शामिल हैं;
    (इ)-“सार्वजनिक प्राधिकरण” से तात्पर्य राज्य सरकार और उसके विभागों से है और इसमें राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत स्थापित या गठित कोई भी प्राधिकरण या निकाय या संस्था शामिल है और जो राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए धन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वामित्व, नियंत्रण या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित है;
    (एफ)-“प्रथम अपीलीय प्राधिकारी” से तात्पर्य धारा 3 के अंतर्गत अधिसूचित अधिकारी या प्राधिकारी से है;
    (जी)-“द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी” से तात्पर्य धारा 3 के अंतर्गत अधिसूचित अधिकारी या प्राधिकारी से है;
    (एच)-“निर्धारित समय-सीमा” से अभिप्राय लोक सुनवाई अधिकारी को किसी शिकायत पर सुनवाई का अवसर प्रदान करने के लिए, या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी या द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी को किसी अपील पर निर्णय लेने के लिए, या पूर्वोक्त प्राधिकारियों को, जैसा भी मामला हो, शिकायतकर्ता या अपीलार्थी को, जैसी भी स्थिति हो, ऐसी शिकायत या अपील पर निर्णय की सूचना देने के लिए अनुज्ञात अधिकतम समय से है;
    (आई)-“दिन” का तात्पर्य कार्य दिवस से है, जिसे समय सीमा कहा जाता है;
    (जे)-“निर्णय” का अर्थ इस अधिनियम के तहत अधिसूचित लोक सुनवाई अधिकारी या अपीलीय प्राधिकरण या पुनरीक्षण प्राधिकरण द्वारा किसी शिकायत या अपील या पुनरीक्षण पर लिया गया निर्णय है और इसमें शिकायतकर्ता या अपीलकर्ता को भेजी गई सूचना भी शामिल है, जैसा भी मामला हो;
    (क)-“निर्धारित” का तात्पर्य इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित से है; और
    (एल)-“राज्य सरकार” से तात्पर्य राजस्थान सरकार से है।
  1. लोक सुनवाई अधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी एवं पुनरीक्षण प्राधिकारी की अधिसूचना एवं निर्धारित समय-सीमा।
  • राज्य सरकार समय-समय पर लोक सुनवाई अधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी तथा पुनरीक्षण प्राधिकारी तथा नियत समय-सीमा अधिसूचित कर सकेगी।
  1. निर्धारित समय सीमा के भीतर शिकायत पर सुनवाई का अवसर पाने का अधिकार।
    (1)-लोक सुनवाई अधिकारी इस अधिनियम के अंतर्गत दायर शिकायत पर निर्धारित समय सीमा के भीतर सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा।
    (2)-लोक सुनवाई अधिकारी किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी की सहायता ले सकेगा, जैसा वह उपधारा (1) के अधीन अपने कर्तव्यों के समुचित निर्वहन के लिए आवश्यक समझे।
    (3)-कोई अधिकारी या कर्मचारी, जिसकी सहायता उपधारा (2) के अधीन मांगी गई है, सहायता मांगने वाले लोक सुनवाई अधिकारी को सभी सहायता प्रदान करेगा और इस अधिनियम के उपबंधों के किसी उल्लंघन के प्रयोजनों के लिए, यथास्थिति, ऐसा अन्य अधिकारी या कर्मचारी लोक सुनवाई अधिकारी माना जाएगा।
    (4)-निर्धारित समय-सीमा उस तिथि से शुरू होगी जब शिकायत लोक सुनवाई अधिकारी या उसके द्वारा शिकायत प्राप्त करने के लिए अधिकृत व्यक्ति के पास दायर की जाती है। शिकायत की प्राप्ति की विधिवत पावती दी जाएगी।
    (5)-उप-धारा (1) के तहत शिकायत प्राप्त होने पर लोक सुनवाई अधिकारी निर्धारित समय सीमा के भीतर शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा और शिकायतकर्ता को सुनने के बाद, शिकायत को स्वीकार करके या मांगे गए लाभ या राहत को प्रदान करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को संदर्भित करके या किसी अन्य कानून, नीति, आदेश, कार्यक्रम या योजना के तहत उपलब्ध वैकल्पिक लाभ या राहत का सुझाव देकर या लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों से इसे अस्वीकार करके शिकायत का फैसला करेगा और निर्धारित समय सीमा के भीतर शिकायत पर अपना निर्णय शिकायतकर्ता को सूचित करेगा।
    5.- सूचना एवं सुविधा केन्द्र की स्थापना।
    (1)लोगों की शिकायतों के कुशल और प्रभावी निवारण के प्रयोजनों के लिए तथा इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायतें प्राप्त करने के लिए, राज्य सरकार सूचना और सुविधा केन्द्रों की स्थापना करेगी, जिसमें ग्राहक सेवा केन्द्र, कॉल सेंटर, सहायता डेस्क और जन सहायता केन्द्रों की स्थापना शामिल हो सकती है।
    (2) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा सूचना एवं सुविधा केन्द्रों के संबंध में नियम बना सकेगी।
    (3)प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिकायत निवारण सहित शिकायत निवारण प्रणाली के विकास, सुधार, आधुनिकीकरण और सुधार के लिए जिम्मेदार होगा।
  2. अपील-
    (1) कोई व्यक्ति जिसे निर्धारित समय-सीमा के भीतर सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया है या जो लोक सुनवाई अधिकारी के निर्णय से व्यथित है, वह निर्धारित समय-सीमा की समाप्ति से या लोक सुनवाई अधिकारी के निर्णय की तारीख से तीस दिनों के भीतर प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को अपील दायर कर सकता है:
    परन्तु प्रथम अपीलीय प्राधिकारी तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात भी अपील स्वीकार कर सकेगा यदि उसका यह समाधान हो जाए कि अपीलकर्ता पर्याप्त कारण से समय पर अपील दायर करने से रोका गया था।
    (2) यदि लोक सुनवाई अधिकारी धारा 4 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता है, तो ऐसे गैर-अनुपालन से व्यथित कोई भी व्यक्ति सीधे प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को शिकायत प्रस्तुत कर सकता है, जिसका निपटारा प्रथम अपील के तरीके से किया जाएगा।
    (3) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी लोक सुनवाई अधिकारी को आदेश दे सकता है कि वह शिकायतकर्ता को उसके द्वारा निर्दिष्ट अवधि के भीतर सुनवाई का अवसर प्रदान करे अथवा अपील को अस्वीकार कर सकता है।
    (4) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय के विरुद्ध द्वितीय अपील प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय की तारीख से तीस दिन के भीतर द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष की जा सकेगी:
    परन्तु यह कि द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी तीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात भी अपील स्वीकार कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाए कि अपीलकर्ता पर्याप्त कारण से समय पर अपील दायर करने से रोका गया था।
    (5) यदि लोक सुनवाई अधिकारी उपधारा (3) के अधीन प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के आदेश का अनुपालन नहीं करता है या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर अपील का निपटारा नहीं करता है, तो व्यथित व्यक्ति द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष सीधे अपील दायर कर सकेगा, जिसका निपटारा द्वितीय अपील की तरह किया जाएगा।
    (6) द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी लोक सुनवाई अधिकारी या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को आदेश दे सकता है कि वह शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करे या अपील का निपटारा, जैसा भी मामला हो, उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर करे या अपील को अस्वीकार कर सकता है।
    (7) शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के आदेश के साथ-साथ द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी धारा 7 के प्रावधानों के अनुसार लोक सुनवाई अधिकारी पर जुर्माना भी लगा सकेगा।
    (8) प्रथम अपीलीय प्राधिकारी और द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी को, इस धारा के अधीन किसी अपील का विनिश्चय करते समय, निम्नलिखित विषयों के संबंध में वही शक्तियां प्राप्त होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (केन्द्रीय अधिनियम सं. 5, 1908) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय में निहित होती हैं, अर्थात:-
    (ए) किसी व्यक्ति को बुलाना और उसे उपस्थित कराना तथा शपथ पर उसकी जांच करना;
    (बी) साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किये जाने योग्य किसी दस्तावेज़ या अन्य भौतिक वस्तु की खोज और उत्पादन;
    (सी) शपथपत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना;
    (डी)किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड की मांग;
    (इ)गवाहों की जांच के लिए कमीशन जारी करना;
    (एफ)अपने निर्णयों, निर्देशों और आदेशों की समीक्षा करना; और/या
    (जी)कोई अन्य विषय जो निर्धारित किया जा सकता है।
  3. जुर्माना.
    (1) जहां द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी की यह राय है कि लोक सुनवाई अधिकारी पर्याप्त और उचित कारण के बिना निर्धारित समय सीमा के भीतर सुनवाई का अवसर प्रदान करने में असफल रहा है, तो वह उस पर जुर्माना लगा सकेगा जो पांच सौ रुपए से कम नहीं होगा, किन्तु पांच हजार रुपए से अधिक नहीं होगा:
    परन्तु इस उपधारा के अधीन कोई शास्ति अधिरोपित करने से पूर्व, उस व्यक्ति को, जिस पर शास्ति अधिरोपित करने का प्रस्ताव है, सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा।
    (2) उपधारा (1) के अधीन द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी द्वारा लगाया गया जुर्माना लोक सुनवाई अधिकारी के वेतन से वसूल किया जा सकेगा।
    (3) यदि द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि लोक सुनवाई अधिकारी या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी पर्याप्त और उचित कारण बताए बिना, इस अधिनियम के अधीन उसे सौंपे गए कर्तव्यों का निर्वहन करने में असफल रहा है, तो वह उस पर लागू सेवा नियमों के अधीन उसके विरुद्ध कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है।
  4. संशोधन.
  • इस अधिनियम के अंतर्गत शास्ति लगाने के संबंध में द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी के आदेश से व्यथित लोक सुनवाई अधिकारी या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी उस आदेश की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी या प्राधिकारी को पुनरीक्षण के लिए आवेदन कर सकता है। नामित अधिकारी या प्राधिकारी निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार आवेदन का निपटारा करेगा:
    परन्तु राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी या प्राधिकारी साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात भी आवेदन पर विचार कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक पर्याप्त कारण से समय पर अपील दायर करने से निवारित हुआ था।
  1. सद्भावनापूर्वक की गई कार्रवाई का संरक्षण।सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के लिए किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जाएगी, जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई हो या की जाने का आशय हो।
  2. न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का निषेध किसी भी सिविल न्यायालय को किसी प्रश्न पर सुनवाई करने,निर्णय लेने या निपटने या किसी मामले का अवधारण करने की अधिकारिता नहीं होगी, जिसे इस अधिनियम के तहत या इसके तहत लोक सुनवाई अधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, द्वितीय अपीलीय प्राधिकारी या राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी द्वारा सुनवाई, निर्णय लेने या निपटने या अवधारित करने की आवश्यकता है।
  3. विद्यमान कानूनों के अतिरिक्त प्रावधान होंगे।
  • इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अतिरिक्त होंगे, न कि उसके अल्पीकरण में।
  1. नियम बनाने की शक्ति।
    (1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
    (2) इस धारा के अधीन बनाए गए सभी नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कम से कम चौदह दिन की अवधि के लिए रखे जाएंगे, जो एक सत्र में अथवा दो उत्तरोत्तर सत्रों में पूरी हो सकेगी और यदि उस सत्र के, जिसमें वे रखे गए हों, अथवा उसके ठीक बाद वाले सत्र के अवसान के पूर्व, राज्य विधान-मंडल का सदन ऐसे किसी नियम में कोई परिवर्तन करता है अथवा संकल्प करता है कि ऐसा कोई नियम नहीं बनाया जाना चाहिए, तो ऐसा नियम तत्पश्चात् ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा अथवा उसका कोई प्रभाव नहीं होगा, जैसा भी मामला हो, तथापि ऐसा कोई परिवर्तन अथवा निष्प्रभावन उसके अधीन पहले की गई किसी बात की वैधता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा।
  2. कठिनाइयों का निवारण।
    (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राज्य सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न होने वाली कोई भी बात कर सकेगी, जो उसे कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हो:
    परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।
    (2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके बनाये जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधान-मंडल के सदन के समक्ष रखा जाएगा।
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top