अगर पुलिस किसी आरोपी को अपराध सिद्ध होने से पहले ही अपराधी की तरह मीडिया में प्रस्तुत करती है, तो यह भारतीय संविधान और कानूनों के खिलाफ है। इस स्थिति में आप निम्नलिखित कानूनी और व्यावहारिक कदम उठा सकते हैं:

1. मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत
- भारतीय संविधान के तहत हर नागरिक को मौलिक अधिकार हैं, जिनमें सम्मान और निजता का अधिकार (Article 21) शामिल है।
- आप राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) या संबंधित राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
✅ 2. उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में याचिका (Writ Petition)
- हाई कोर्ट में रिट याचिका (Article 226) या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका (Article 32) दायर कर सकते हैं।
- याचिका में पुलिस की कार्रवाई को “Natural Justice” के सिद्धांत के विरुद्ध बताया जा सकता है।
✅ 3. मीडिया ट्रायल के खिलाफ कानूनी कार्यवाही
- मानहानि (Defamation) के तहत आप मीडिया या पुलिस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करा सकते हैं यदि आपकी छवि को गलत तरीके से पेश किया गया हो।
- IPC की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का मुकदमा दायर किया जा सकता है।
✅ 4. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत
- पुलिस अधीक्षक (SP), आयुक्त (Commissioner), या डीजीपी (DGP) को लिखित शिकायत कर सकते हैं।
- साथ ही शिकायत की कॉपी गृह मंत्रालय और राज्य के गृह विभाग को भी भेजी जा सकती है।
✅ 5. RTI के जरिए जानकारी मांगें
- आप RTI (सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005) के तहत पूछ सकते हैं कि आरोपी को मीडिया में अपराधी की तरह क्यों प्रस्तुत किया गया?
- संबंधित पुलिस स्टेशन से यह जानकारी ली जा सकती है।
⚖️ संबंधित कानूनी बिंदु:
- “Innocent until proven guilty” यानी “जब तक अपराध सिद्ध न हो, व्यक्ति निर्दोष माना जाएगा” – यह भारतीय न्याय प्रणाली की मूल भावना है।
- Supreme Court का निर्णय: “DK Basu vs State of West Bengal (1997)” – आरोपी के अधिकारों की रक्षा का landmark judgment है।
- Law Commission of India की रिपोर्ट्स भी कहती हैं कि पुलिस को मीडिया में आरोपी को दोषी की तरह पेश करने से बचना चाहिए।
📝 निष्कर्ष:
यदि पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को अदालत में अपराध सिद्ध होने से पहले ही मीडिया में अपराधी के रूप में पेश किया जाता है, तो यह न्याय की प्रक्रिया का उल्लंघन है और इसके विरुद्ध कानूनी रास्ता अपनाया जा सकता है।
सवाल– किसी व्यक्ति को पुलिस आरोप के आधार पर गिरफ्तार करती है और उसी समय उसे अपराधियों की तरह फर्श पर बैठा कर तस्वीरें अलग-अलग अखबारों में छपवा देती है। जबकि तब तक वह केवल आरोपी होता है, अपराधी नहीं। बाद में न्यायालय मुकदमा सुन कर फैसला देते हैं कि वह अपराधी सिद्ध हुआ या नहीं। कोर्ट का निर्णय होने से पहले आरोपी को अपराधी की तरह सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करने से आरोपी व्यक्ति की छवि समाज में धूमिल होती है। ऐसे मामलों में क्या कार्यवाही की जा सकती है, ताकि ऐसी घटनाओं पर रोक लगे ? इस पर भी RTI कार्यकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए।
जबाब : पुलिस को ऐसा कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह कोर्ट में अपराध सिद्ध होने से पहले किसी आरोपी की पहचान मीडिया में उजागर कर उसकी छवि खराब करें। इसी कारण आपने देखा होगा कि कई आरोपियों को उनका मुंह ढक कर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेश किया जाता है या कोर्ट में ले जाया जाता है।
एक ऐसे मामले में जहां किसी व्यक्ति को पुलिस आरोप के आधार पर गिरफ्तार करती है और उसकी तस्वीरें अपराधी के रूप में विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हो जाती हैं, जबकि वह अभी तक केवल एक आरोपी है और दोषी साबित नहीं हुआ है, तो व्यक्ति की छवि को धूमिल होने से बचाने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:
- कानूनी उपाय:
मानहानि का मुकदमा (Defamation Suit): यदि प्रकाशित तस्वीरें या साथ में दी गई जानकारी व्यक्ति को अपराधी के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत करती है और उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, तो वह संबंधित समाचार पत्रों या प्रकाशनों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है। मानहानि दीवानी (सिविल) और आपराधिक (क्रिमिनल) दोनों तरह की हो सकती है।
- प्रकाशनों को कानूनी नोटिस (Legal Notice to Publications):
व्यक्ति अपने वकील के माध्यम से उन समाचार पत्रों को कानूनी नोटिस भेज सकता है जिन्होंने तस्वीरें प्रकाशित की हैं, जिसमें उनसे माफी मांगने, स्पष्टीकरण प्रकाशित करने और भविष्य में ऐसी प्रथाओं से बचने का आग्रह किया जा सकता है। - गोपनीयता के उल्लंघन के लिए मुकदमा (Suit for Violation of Privacy): गिरफ्तारी के दौरान व्यक्ति की तस्वीरें उसकी सहमति के बिना प्रकाशित करना निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। - पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत (Complaint Against Police Officials): यदि पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर व्यक्ति को अपमानित करने या उसकी छवि खराब करने के इरादे से तस्वीरें लीक की हैं या प्रकाशित करवाई हैं, तो उनके खिलाफ आंतरिक जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- जनसंपर्क और मीडिया प्रबंधन (Public Relations and Media Management):
स्पष्टीकरण जारी करना (Issuing a Clarification): व्यक्ति या उसके परिवार/वकील द्वारा एक स्पष्टीकरण जारी किया जा सकता है, जिसमें यह बताया जाए कि व्यक्ति अभी केवल एक आरोपी है और न्यायालय में उसका मामला विचाराधीन है।
इस स्पष्टीकरण को उन मीडिया आउटलेट्स को भेजा जा सकता है, जिन्होंने तस्वीरें प्रकाशित की थीं।
सोशल मीडिया का उपयोग (Using Social Media):
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग अपनी बात रखने और जनता को सही जानकारी देने के लिए किया जा सकता है।
हालांकि, इसमें सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि कानूनी प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
वकील के माध्यम से बयान (Statement Through Lawyer):
एक वकील के माध्यम से दिया गया आधिकारिक बयान अधिक विश्वसनीय और प्रभावी हो सकता है। - भविष्य की रोकथाम के लिए सुझाव :
पुलिस सुधार (Police Reforms):
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस को संवेदनशील बनाने और उनकी प्रशिक्षण में सुधार की आवश्यकता है। पुलिस को यह समझना चाहिए कि वे तब तक किसी को अपराधी के रूप में प्रस्तुत न करें ,जब तक कि न्यायालय द्वारा उसे दोषी न ठहराया जाए। मीडिया के लिए दिशानिर्देश (Guidelines for Media):
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) और अन्य मीडिया नियामक संस्थाओं को ऐसे मामलों में मीडिया के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी करने चाहिए, ताकि वे किसी भी व्यक्ति को दोषी साबित होने से पहले अपराधी के रूप में चित्रित न करें।
- जन जागरूकता (Public Awareness): जनता को इस बात के प्रति जागरूक करना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति को केवल आरोप के आधार पर अपराधी नहीं मानना चाहिए।
“दोषी साबित होने तक निर्दोष” (Innocent until proven guilty) के सिद्धांत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
महावीर पारीक
Legal Ambit
