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क्या है 26 जनवरी गणतंत्र दिवस

26 जनवरी यानी संविधान लागू होने का दिन, इस आजाद मुल्क के गणतंत्र बनने का दिन, कानून का राज स्थापित होने का दिन।

भारत में संविधान निर्माण का कार्य दिसंबर 1946 से ही शुरू हो गया था। संविधान निर्माण का काम लगभग 250 सदस्यों की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को पूरा कर लिया। वो दिन हम ‘कानून दिवस’ या ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाते हैं।

‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ द्वारा 26 जनवरी 1930, को पूर्ण स्वराज की मांग उठाते हुए देशवासियों से इस दिन को ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में मनाने की अपील की गई थी। इसी दिन की याद में 26 नवंबर 1949 को तैयार संविधान को दो महीने बाद अर्थात 26 जनवरी 1950 से लागू करने का निश्चय किया गया, जिसे हम गणतंत्र दिवस के रूप में जानते हैं।

सामान्य जन के लिए गणतत्र दिवस के मायने

1) जनता का शासन जनता के लिए (People’s rule for the people)

गणतंत्र का अर्थ है भारत का शासन ‘भारत की जनता’ द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों अर्थात ‘गणों’ द्वारा ‘भारत की जनता’ को ध्यान में रख कर किया जाएगा। भारत की जनता इन प्रतिनिधियों को उनके परफॉर्मेंस के आधार निरंतर होने वाले चुनावों में बदल सकती है। अर्थात कोई भी संस्थान ना संसद, ना कार्यपालिका, ना ब्यूरोक्रेसी और ना ही न्यायपालिका सर्वोपरि है बल्कि जनता सर्वोपरि है। इसे ही We The People कहते हैं। यह शासन आधुनिक ‘चेक्स एंड बैलेंस’ (checks and balances) के अनुकूल है।

जनता सर्वोपरि है, ये याद रखें!

2) कानून का शासन (Rule of Law)

‘संविधान’ स्थापित होने का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ है की भारत का शासन किसी व्यक्ति, संस्थान, समाज या धर्म की मर्जी से ना होकर, लॉजिकली बनाए गए कुछ नियमों, जिन्हें हम ‘कानून’ के नाम से जानते हैं, के द्वारा होगा। अर्थात कोई भी जनप्रतिनिधि या जनसेवक किसी मुद्दे पर निर्णय लेना चाहता है तो उसे संविधान के दायरे में ही रह कर कार्य करना होगा।

जिस देश में कानून का राज होता है, वह राजा कानून नहीं होता, कानून राजा होता है।

3) समानता (Egalitarianism)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 भारत में समानता स्थापित करते हैं। अर्थात भारत का संविधान इस बात का प्रावधान करता है कई किसी भी भारतीय के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग, वंश, वर्ग या जन्म स्थान के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाएगा। समानता का अधिकार संविधान की प्रमुख गारंटियों में से एक है।

एक बेहद असमान समाज के लिए, जहां ऐतिहासिक रूप से अन्याय हमेशा होता रहा, ये एक क्रांतिकारी विचार रहा है।

4) 6 स्वतंत्रताओं का अधिकार (Six fundamental freedoms)

भारतीय संविधान का आर्टिकल 19 नागरिक अधिकारों के रूप में 6 प्रकार की स्वतंत्रताओं की गारंटी देता है। इसमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रतता, भारत के किसी भी भाग में बसने और निवास करने की स्वतंत्रता तथा कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता शामिल है। इन अनुच्छेदों में कुछ प्रतिबंध भी शामिल हैं जिन्हें विशेष परिस्थितियों में राज्य द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर लागू किया जा सकता है।

इन 6 आजादियों से ही सिविल लिबर्टी की बुनियाद पड़ती है। ये 6 हमारे देश के हर नागरिक को ताकतवर बनाते हैं।

5) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against exploitation)

भारतीय संविधान में यह अधिकार आर्टिक्ल 23 से 24 में निहित है। इनमें राज्य या व्यक्तियों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों का शोषण रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 23 के प्रावधान के अनुसार मानव तस्करी प्रतिबन्धित है, इसे कानून द्वारा दंडनीय अपराध बनाया गया है, साथ ही बेगार या किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिए बिना उसे काम करने के लिए मजबूर करना जहां कानूनन काम न करने के लिए या पारिश्रमिक प्राप्त करने के लिए हकदार है, भी प्रतिबंधित किया गया है।

6) धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार (Freedom of Religion)

भारतीय संविधान में यह अधिकार आर्टिकल 25 से 28 में निहित है, जो सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य सुनिश्चित करता है। संविधान के अनुसार, भारत का कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है और राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ निष्पक्षता और तटस्थता से व्यवहार किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 25 सभी लोगों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य तथा राज्य की सामाजिक कल्याण और सुधार के उपाय करने की शक्ति के अधीन होते हैं।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन, आपस में है भाई बहन

7) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों को अपने मूल अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध सुरक्षा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जाने की शक्ति देता है। भारतीय संविधान का आर्टिकल 32 स्वयं एक मूल अधिकार के रूप में, अन्य मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए गारंटी प्रदान करता है। संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को इन अधिकारों के रक्षक के रूप में नामित किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय को मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा प्रादेश (रिट, writ) जारी करने का अधिकार दिया गया है, जबकि उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 226 – जो एक मैलिक अधिकार नहीं है – मूल अधिकारों का उल्लंघन न होने पर भी इन विशेषाधिकार प्रादेशों को जारी करने का अधिकार दिया गया है।

आपके मूल अधिकार ही 26 जनवरी को इतना स्पेशल बनाते हैं।

सारांश

26 जनवरी वो दिन है जब भारत ने अपने आप को एक आधुनिक, सभ्य, प्रगतिशील देश के रूप में स्थापित करने का पहला कदम उठाया। यदि आप किसी भी प्रकार के भेदभाव, जातपात और धार्मिक उन्माद में यकीन रखते हैं, तो आप इस दिन की भावना को नष्ट करते हैं।

उम्मीद करता हूं अब आप अधिक जागरूक हो भारतीय गणतंत्र दिवस का आनंद उत्सव मना पाएंगे।

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