पार्टिसिपेंट्स ने किए सवाल तो विशेषज्ञों ने दिए जवाब
138 वें RTI वेबिनार में डेटा बिल के दुष्प्रभावों पर हुई चर्चा
RTI कानून को ब्यूरोक्रैटिक सूचना आयुक्त कर रहे खोखला
सुरत-गुजरात,प्रस्तावित डेटा बिल के दुष्प्रभावों को लेकर एक बार पुनः 138 वें राष्ट्रीय सूचना के अधिकार वेबीनार में चर्चा का दौर गर्म रहा। उपस्थित विशेषज्ञों और आरटीआई के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने सरकार की नीतियों पर जमकर प्रहार किया। उपस्थित आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार डेटा बिल के माध्यम से जो प्रस्तावित मसौदा लाने वाली है उसे सूचना के अधिकार कानून खोखला हो जाएगा।
यदि डेटा बिल प्रस्तावित मसौदे में पास हुआ तो महत्वपूर्ण और सामान्य जानकारियों से भी हो जाएंगे दूर – शैलेश गांधी
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि सूचना के अधिकार कानून को लाने के लिए हम लोगों ने काफी मशक्कत की है और मजदूर किसान शक्ति संगठन सहित अन्य लोगों के साथ मिलकर हमने जो सूचना का अधिकार कानून लाया है अब सरकार सूचना के अधिकार कानून को विभिन्न स्तर पर कमजोर करना चाह रही है। पहले सरकार ने कई अमेंडमेंट लाए जिसमें सूचना आयुक्त के कार्यकाल और टेनर पर प्रहार किया और बदलाव किया गया। और अब प्रस्तावित डेटा बिल के माध्यम से आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) हटाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि निजता के नाम पर आम जनता से जुड़ी हुई कई सामान्य जानकारी जैसे राशन कार्ड, राशन मिलने संबंधी जानकारी, मजदूरों की मजदूरी से संबंधित मस्टररोल, आम नागरिक के पेंशन की जानकारी से लेकर शासकीय कामकाज की जानकारी मिलना मुश्किल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि मात्र 5 प्रतिशत लोगों को लाभ देने के उद्देश्य से 95 परसेंट देश की आम जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। हम सामान्य तौर पर जो जानकारी हासिल कर लेते थे अब डेटा प्रोटेक्शन बिल के नाम पर वह हमे नहीं मिल पाएगी। उन्होंने कहा कि देश के समस्त नागरिकों और आरटीआई से जुड़े हुए लोगों को अभियान चलाना चाहिए और लोगों को अधिक से अधिक जोड़कर आरटीआई कानून की विशेषता बताते हुए डाटा बिल के माध्यम आर टी आई कानून को खत्म करने का सरकार का जो प्रयास है उसके बारे में आम जनता को अवगत कराएं।
सूचना के अधिकार कानून को लाने में पत्रकारों की भूमिका अहम – आत्मदीप
पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि मजदूर किसान शक्ति संगठन और नेशनल कैंपेन फॉर राइट टू इनफार्मेशन जैसे संगठनों के दौर में भी पत्रकारों की भूमिका बहुत अहम रही है। उन्होंने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि प्रभाष जोशी एक ऐसे पत्रकारों में से रहे हैं जिन्होंने आरटीआई कानून के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया हुआ था। जब उन्होंने और अन्य पत्रकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से भी सूचना के अधिकार के महत्व को रेखांकित करते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था और तब जाकर हमें महत्वपूर्ण सूचना का अधिकार कानून प्राप्त हुआ है। लेकिन आज कल जो पत्रकारिता चल रही है वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और पत्रकारों को आरटीआई के विषय में कलम चलाने का समय नहीं मिल रहा है।
पत्रिका अखबार में एक दौर था जब आरटीआई पर रोजाना आर्टिकल छपते थे – कैलाश सनोलिया
मध्यप्रदेश से अधिमान्य पत्रकार कैलाश सनोलिया ने कहा कि एक दौर था जब पत्रिका अखबार में प्रतिदिन फ्रंट पेज पर आरटीआई और सूचना के अधिकार से संबंधित आवेदन से लेकर अपील तक कैसे करें और किस विभाग से क्या जानकारी प्राप्त करें इस विषय में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए फ्रंट पेज पर आर्टिकल छपता था। आरटीआई से संबंधित समाचारों को प्रमुखता दी जाती थी और अखबार और पत्रकार इस विषय को काफी गंभीरता से लेते थे लेकिन आज वह समय आ गया है जब हम न्यूज़ बना कर भी देते हैं तो भी अखबारों में आरटीआई से संबंधित समाचार कम छपती है। इसी का लाभ उठाते हुए सरकारें जनता के सबसे महत्वपूर्ण पारदर्शिता के कानून आरटीआई पर प्रहार करते हुए उसे संशोधित करना चाह रही है। उन्होंने कहा इस विषय पर जनता को आवाज उठानी पड़ेगी और जब जनता आवाज उठाएगी तो स्वाभाविक तौर पर पत्रकार वहां पर जाएंगे और उस खबर को छापेंगे। कहीं न कहीं इसके लिए जनता भी जिम्मेदार है।