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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोवडे वाली जजों की बेंच के आदेश के बाद आर टी आई कानून कमजोर हुआ कहा आयुक्त बिमल जुल्का ने

अब बचे खुचे आर टी आई कानून को डेटा बिल से भी होगा नुकसान

डेटा बिल में व्यक्तिगत और गैर व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा को सरकार को स्पष्ट करना चाहिए – पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त बिमल जुल्का

धारा 8(1)(जे) के संशोधन से जानकारी प्राप्त करने में आमजन को होगी मुश्किल

उत्तराखंड के आरटीआई रिसोर्स पर्सन वीरेंद्र कुमार ठक्कर ने भी स्लाइड प्रेजेंटेशन से डेटा बिल बिल के प्रावधानों की विस्तार से की चर्चा

भारत सरकार के प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल 2022-23 के वर्तमान मसौदे का सूचना के अधिकार कानून पर कितना विपरीत प्रभाव पड़ेगा इस बात को लेकर एक बार पुनः 134 वें राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया।

प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल में व्यक्तिगत जानकारी के नाम पर सूचनाएं मिलना होगा मुश्किल – बिमल जुल्का

आरटीआई कानून पर होने वाले दुष्प्रभाव पर चर्चा करते हुए पूर्व केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त विमल जुल्का ने कहा कि आरटीआई कानून जब बनाया गया उसमें सभी प्रावधान अच्छी प्रकार स्पष्ट किए गए थे। लेकिन समय के साथ इस पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न आदेशों के माध्यम से संशोधन भी किए गए। जिसकी वजह से कानून में काफी कमजोरी आई है और काफी जानकारियां जस्टिस बोबडे और अन्य जजों की पीठ के द्वारा दिए गए निर्णय के बाद वर्ष 2018-19 के दरम्यान निजी जानकारियों की श्रेणी में आने से उन्हे देने के लिए आदेश में मनाही की गई। अब यदि देखा जाए तो वर्तमान प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल के माध्यम से आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) को संशोधित किए जाने का प्रयास चल रहा है इससे काफी लोकहित से जुड़ी हुई जानकारियां प्राप्त होने में आमजन को कठिनाई होगी। उन्होंने यह भी कहा कि आरटीआई कानून का उपयोग दुर्भावना से नहीं किया जाना चाहिए। कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि दुर्भावना पूर्वक मांगी गई जानकारियों की वजह से जब मामले कोर्ट स्तर तक जाते हैं तो वहां न्यायालय के आदेश के बाद उनमें संशोधन हो जाता है जिसकी वजह से सूचना आयोग भी फिर जानकारियां दिलवा पाने में असमर्थ रहता है। उन्होंने कहा कि सूचना आयुक्त के तौर पर हमारे लिए चिंता का विषय है कि देश में पारदर्शिता के लिए जाना माना आर टी आई कानून कमजोर न किया जाए। इसके लिए हम सबको प्रयास करने की आवश्यकता है।

पहली बार राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनार में शिरकत किए पूर्व मुख्य केंद्रीय सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने कहा कि सतत आरटीआई कानून के विषय में इस प्रकार ऑनलाइन और ऑफलाइन चर्चा किए जाने से लोगों में जन जागरूकता बढ़ेगी जो एक अच्छे लोकतांत्रिक समाज का उद्देश्य होना चाहिए।

जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण एवं संसदीय समिति के डेटा बिल के पिछले 2018-19 के मसौदे वर्तमान प्रस्तावित मसौदे 2022 से बेहतर – वीरेंद्र कुमार ठक्कर

कार्यक्रम में हमेशा अपने विचार रखने वाले उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन वीरेंद्र कुमार ठक्कर ने विस्तारपूर्वक स्लाइड प्रेजेंटेशन के माध्यम से डेटा प्रोटेक्शन बिल के कई मसलों पर चर्चा की। उन्होंने वर्ष 2018-19 में जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा कमेटी एवं 2019-20 में संसदीय कमेटी के पूर्व प्रस्तावित बिल के मसौदे पर भी प्रकाश डाला और उसकी तुलना वर्तमान 2022 के डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल के मसौदे से किया। वीरेंद्र ठक्कर ने विस्तार से बिल के सभी पहलुओं पर चर्चा की और बताया की आरटीआई कानून को कमजोर करने वाली जो कड़ी प्रस्तावित डेटा बिल 2022-23 के वर्तमान प्रस्तावित मसौदे में धारा 29(2) और 30(2) के रूप में डाली गई है उसके बाद आरटीआई कानून का सर्वोपरि प्रभाव खत्म हो जाएगा और साथ में 8(1)(जे) के प्रावधान भी हटा दिए जाएंगे इसमें किसी षडयंत्र की बू आ रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि अभी संसद मे बिल पास नहीं हुआ है इसलिए उम्मीद की जा रही है कि दोनों ही प्रावधान बिल से हटाए जाएंगे।

कार्यक्रम में पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने भी शिरकत की और थोड़े समय के लिए आरटीआई कानून पर अपने विचार रखें। छत्तीसगढ़ से आरटीआई एक्टिविस्ट देवेंद्र कुमार अग्रवाल ने भी स्लाइड प्रेजेंटेशन के माध्यम से डेटा प्रोटेक्शन बिल और आरटीआई कानून के बारे में चर्चा की। कार्यक्रम में विचार विमर्श के दौरान कई आरटीआई कार्यकर्ता सोमशेखर राव, ग्वालियर से राज तिवारी एवं राजगढ़ मध्य प्रदेश से जयपाल सिंह खींची सहित कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपने विचार रखे।

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