जोधपुर,”कानून की चक्की भले धीरे पिसती है लेकिन बारीक पिसती है… यह कहावत सच हुई है। जोधपुर में फर्जी मेडिकल घोटाले का बड़ा मामला सामने आया है। आरोपियों में संतोष टाक, रामेश्वर लाल टाक और इनके साथ मिलकर काम करने वाला पूरा नेटवर्क शामिल बताया जा रहा है। अदालत ने पुलिस की एकतरफा जांच पर सवाल उठाते हुए फाइनल रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और एफएसएल जांच के आदेश दिए हैं।”

परिवादी राव धनवीर सिंह ने खुलासा किया कि—संतोष टाक, जो राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय गोटन में कार्यरत है, वह कई बार अनुपस्थित रहने पर फर्जी मेडिकल फिटनेस और सिकनेस सर्टिफिकेट बनवाती रही। यह मेडिकल मथुरादास माथुर अस्पताल से जारी दिखाए गए लेकिन इन पर डॉक्टर के सिग्नेचर नहीं थे। जब अस्पताल से प्रतिलिपि मांगी गई तो एक ही मेडिकल की दो अलग-अलग कॉपी मिलीं—एक बिना सिग्नेचर और दूसरी साइन की हुई। मरीज पंजिका में भी नाम बदलकर लिखे गए।
➡ एक दिनांक के दो मेडिकल – अलग-अलग वर्जन
➡ मरीज पंजिका में काटकर नाम बदला गया
➡ पुलिस पर आरोप – जांच में पक्षपात
“धनवीर सिंह का आरोप है कि यह घोटाला वर्षों से चल रहा है और हजारों फर्जी मेडिकल जारी किए गए। मामला कोर्ट पहुंचा तो न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पुलिस की जांच को खारिज कर आदेश दिए कि—”गवाहों के बयान दर्ज किए जाएं मूल दस्तावेज और काउंटर फाइल पेश हो हस्तलिखित और हस्ताक्षर की एफएसएल जांच करवाई जाए.
परिवादी राव धनवीर सिंह ने खुलासा “यह मेरी नहीं, बल्कि हर आम नागरिक की जीत है। ऐसे मगरमच्छ पुलिस और सिस्टम को जेब में रखते हैं। लेकिन देश की अंतिम उम्मीद न्यायपालिका है। मुझे विश्वास है कि संतोष टाक, रामेश्वर टाक और उनकी गैंग को जेल जाना ही होगा। यह घोटाला व्यापम से भी बड़ा निकलेगा।”



“तो कुल मिलाकर फर्जी मेडिकल माफिया के खिलाफ अदालत का बड़ा फैसला आया है। अब देखना होगा कि एफएसएल जांच में कौन-कौन फंसता है और कितनी बड़ी साजिश सामने आती है।”


