याचिकाकर्ता हितेंद्र पंद्राम से जुड़ा एक महत्वपूर्ण कानूनी मामला सामने आया
आजकल महिला कानून का दुरुपयोग कर अपना कार्य, मतलब ,और अन्य जरूरत की माँग कर पूरा न होने पर झूठे बहाने बनाकर एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगा कर केस फ़ाइल करते हैं जिसमें बलात्कार जैसा संगीन अपराध के केस में फंसा कर कार्यवाही करती हैं,

यह मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के इर्द-गिर्द घूमता है , जो बलात्कार के आरोपों से निपटता है, और क्या शादी के बारे में झूठे बयानों से सहमति प्राप्त की गई थी। शिकायतकर्ता, एक महिला ने याचिकाकर्ता पर शादी के झूठे वादे पेश करते हुए 2012 से 2022 तक कई वर्षों तक उसके साथ संबंध बनाए रखने का आरोप लगाया।
आरोपों की तथ्यात्मक पृष्ठभूमि : इस मामले में अभियोक्ता द्वारा लगाए गए आरोप 14 अगस्त 2012 से 31 दिसंबर 2022 तक की घटनाओं का वर्णन करते हैं । उसके बयानों के अनुसार, वह उस समय 20 के दशक की शुरुआत में थी जब याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर उसके भरोसे का फायदा उठाया और शारीरिक संबंध स्थापित किए। शिकायतकर्ता का दावा है कि उसके बार-बार मना करने और बाद में इनकार करने के बावजूद, याचिकाकर्ता ने उस पर दबाव डालना जारी रखा और शादी के झूठे बहाने के तहत अंतरंग संबंध बनाए। एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) 18 मई 2024 को दर्ज की गई थी , जो अभियोक्ता द्वारा एक लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद आई थी।
अभियोक्ता के बयानों से मुख्य विवरण : अभियोक्ता की गवाही दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 और धारा 161 के तहत दर्ज की गई थी । अपने बयानों में, उसने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता ने संबंध बनाए रखने के लिए धमकी दी और बल का प्रयोग किया। हालाँकि, अन्य मामलों में, उसने संकेत दिया कि कई बार, उसने विवाह के बारे में झूठे आश्वासन के प्रभाव में, रिश्ते के लिए सहमति दी थी। मामले में यह भी उल्लेख किया गया है कि उसने अपनी शुरुआती हिचकिचाहट के बावजूद संबंध जारी रखा, जो सहमति की प्रकृति और क्या यह पूरी तरह से सूचित और स्वैच्छिक था, के बारे में सवाल उठाता है।
शादी का झूठा बहाना बनाने का विवाद :-इस मामले में मुख्य मुद्दों में से एक यह दावा है कि याचिकाकर्ता ने शादी के वादे का इस्तेमाल पीड़िता को यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित करने के लिए किया। हालाँकि, सभी उपलब्ध दस्तावेजों और गवाही की समीक्षा करने के बाद, अदालत ने आरोपों की संगति के बारे में विसंगतियाँ पाईं। कुछ बयानों में, यह सुझाव दिया गया था कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता को मजबूर किया, जबकि अन्य में, यह निहित था कि उसने सीधे तौर पर प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं किया, लेकिन दबाव महसूस किया हो सकता है। अदालत ने इन विसंगतियों की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि शादी के झूठे बहाने के तहत यौन संबंध बनाने का दावा निर्णायक रूप से साबित नहीं किया जा सकता है।
बलात्कार के आरोपों पर फैसला :-मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामले के सभी पहलुओं पर विचार करते हुए आरोपों की गहन जांच की, जिसमें पीड़िता के बयान और प्रस्तुत साक्ष्य शामिल हैं। न्यायालय ने पाया कि सहमति के बिना जबरन शारीरिक संबंध बनाने के दावे में पर्याप्त सबूत नहीं थे। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियोक्ता ने याचिकाकर्ता के साथ कई मौकों पर संबंध बनाने का जानबूझकर फैसला किया, जो इस तर्क को कमजोर करता है कि वह बलात्कार की निष्क्रिय पीड़िता थी।
न्यायालय का निष्कर्ष :- प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप का समर्थन करने के लिए कोई स्पष्ट सबूत नहीं था । जबकि अभियोक्ता के बयानों में परस्पर विरोधी दावे थे, इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं थे कि याचिकाकर्ता ने उसकी सहमति के बिना उसके साथ बलात्कार किया था। इसके अलावा, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि शिकायतकर्ता पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव या गलत धारणा साबित नहीं हुई है। नतीजतन, न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 , 376(2)(एन) , और 376(2)(एफ) के तहत पीएस करजिया , जिला डिंडोरी में दर्ज एफआईआर संख्या 120/2024 को रद्द कर दिया ।
अंतिम निर्णय: एफआईआर और मुकदमे की कार्यवाही रद्द :-अदालत ने अंततः याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार कर ली और एफआईआर तथा उससे संबंधित सभी मुकदमे की कार्यवाही को रद्द कर दिया। एसटी संख्या 76/2024 के तहत ट्रायल कोर्ट में चल रहा मामला खारिज कर दिया गया और याचिकाकर्ता को आरोपों से उत्पन्न होने वाली आगे की कानूनी जटिलताओं से राहत दी गई।
केस नंबर: एमसीआरसी 12345/2024
याचिकाकर्ता बनाम प्रतिवादी
हितेंद्र पंद्राम बनाम मध्य प्रदेश राज्य
MCRC_34387_2024_FinalOrder_02-04-2025