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आरटीआई कानून को लेकर हाईकोर्ट कर्नाटक का बड़ा फैसला बना चर्चा का विषय
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अब RTI की जानकारी नही देने पर लगेंगे हर्जाने पर व्याज,अब लोक सूचना अधिकारियों की खैर नहीं।
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110 वें RTI वेबिनार में हुआ बड़ा खुलासा
आरटीआई कानून को लेकर हाई कोर्ट कर्नाटक का एक बड़ा फैसला सामने आया है। रिट पिटिशन क्रमांक 4913/2022 सिजो सेबेस्टियन बनाम कर्नाटक राज्य के एक मामले में 26 जुलाई 2022 को जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने अपने फैसले में कहा कि जिस प्रकार सरकारी विभाग आम व्यक्ति को परेशान करते हैं और जानकारी समय पर नहीं देते उनके लिए यह आंख खोलने वाला आदेश होगा। उन्होंने अपने फैसले में कर्नाटक स्कूल शिक्षा विभाग से जुड़े हुए एक मामले में खंड शिक्षा अधिकारी को 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है और 10 हज़ार रुपये का हर्जाना देने के लिए आदेश दिए हैं।
साथ ही यदि हर्जाना आदेश के तुरंत बाद नहीं दिया जाता तो प्रथम माह में वार्षिक तौर पर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज लगेगा और यदि एक माह का समय व्यतीत होता है तो अगले माह से 5 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज लगाया जाएगा।
इसी बात को लेकर आरटीआई रिवॉल्यूशनरी ग्रुप और इससे जुड़े हुए कई सामाजिक संगठनों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर 110 वां आरटीआई वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, राजस्थान से आरटीआई एक्टिविस्ट ताराचंद्र जांगिड़, उत्तराखंड से आरटीआई रिसोर्स पर्सन वीरेंद्र कुमार ठक्कर, जोधपुर राजस्थान से सुरेंद्र जैन एवं लखनऊ उत्तर प्रदेश से आलोक कुमार सिंह सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी बातें रखी और कार्यक्रम में सहभागिता निभाई।
कार्यक्रम में डिस्कशन के दौरान विभिन्न प्रकार के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अन्य आदेशों पर चर्चा की गई और बताया गया कि कर्नाटक हाई कोर्ट का जो वर्तमान में हर्जाने पर ब्याज लगाने जैसा आदेश हुआ है यह अपने आप में अद्वितीय है।
सूचना छुपाने वाले लोक सूचना अधिकारियों की खैर नहीं, आवेदकों को देना होगा हर्जाना और उस पर लगेगी ब्याज
राष्ट्रीय स्तर के वेबीनार कार्यक्रम के दौरान यह बात सामने आई कि देश के सभी सूचना आयोग अब इसी तर्ज पर काम करेंगे तो आरटीआई कानून को मजबूती मिलेगी। जिस प्रकार लोक सूचना अधिकारियों के द्वारा अक्सर धारा 8, 9 अथवा 11 का हवाला देते हुए सूचना छिपाने का काम किया जाता है उससे कहीं न कहीं जो आवेदक हैं वह काफी प्रताड़ित होते हैं और उन्हें प्रथम, द्वितीय अपील के साथ-साथ सूचना आयोग में शिकायत और फिर बाद में हाई कोर्ट में रिट पिटिशन लगाना पड़ता है। इसी बात को ध्यान रखते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट से जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित के द्वारा दिनांक 26 जुलाई 2022 को उक्त विषय में दिया गया आदेश लैंडमार्क निर्णय के तौर पर देखा जा रहा है। वेबीनार में उपस्थित विशेषज्ञों शैलेश गांधी और आत्मदीप सहित अन्य आरटीआई एक्टिविस्ट के द्वारा यह बात रखी गई कि निश्चित तौर पर यह फैसला आगे आने वाले समय में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और लोक सूचना अधिकारियों पर हर्जाने के साथ ब्याज भी लगाई जाएगी।
कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया