सूरत,रेप पीड़िता की पहचान उजागर करने पर दो साल तक की हो सकती हैं कैद, पीडिता का असली नाम या उससे जुडी कोई भी जानकारी को उजागर नहीं किया जा सकता । चाहे वह उसके परिजन या दोस्त ही क्यों ना हो। इसी वजह मिडिया भी हमेशा पीडिता के नाम से अनभिज्ञ ही लिखते है। जिससे किसी प्रकार की पहचान न हो,ऐसे में समाचार चैनल जी न्यूज पर पीड़िता के दोस्त और इस घटना के एकमाञ चश्मदीद ने सामने आकर सिलसिलेवार पूरा वाक्या बयां कर दिया और पुलिस का अमानवीय चेहरा उजागर किया। जिससे पीड़िता की पहचान उजागर कर दिया जिसके के बाद घटनाक्रम के चलते एफआईआर दर्ज करने का निर्णय लिया है।दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने बताया कि चैनल ने पीड़ित की पहचान जाहिर की है। दुष्कर्म समेत कुछ अन्य मामलों में ऐसा करने की कानूनी मनाही है, इसलिए चैनल के खिलाफ आईपीसी की धारा 228ए के तहत केस दर्ज किया जाएगा। जबकि अभी नई धारा के तहत BNS के तहत दर्ज किया जायेगा.लेकिन अगर कानूनी नजरिए से देखा जाए तो कानून इसकी इजाजत नहीं देता।
दरअसल, बलात्कार की शिकार लड़की या महिला का नाम प्रचारित-प्रकाशित करने और उसके नाम को ज्ञात बनाने से संबंधित कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228 ए के तहत अपराध है। आईपीसी की धारा 376, 376ए, 376बी, 376सी, 376डी, 376जी के तहत केस की पीडिता का नाम प्रिंट या पब्लिश करने पर दो साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। कानून के तहत बलात्कार पीडि़ता के निवास, परिजनों, दोस्तों, विश्वविद्यालय या उससे जुड़े अन्य विवरण को भी उजागर नहीं किया जा सकता। जबकि अभी नई धाराओं बीएनएस (BNS) 72/73,65(1),66,67,68,70(1) के तहत मामला दर्ज करने का प्रावधान कानून में हैं.
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 72 और 73 से जुड़ी जानकारीः
- बीएनएस की धारा 72, कुछ अपराधों में शामिल पीड़ितों की पहचान की रक्षा से जुड़ी है. इस धारा के तहत, धारा 64 से 71 के अंतर्गत आने वाले अपराधों में पीड़ितों की पहचान उजागर करने पर दो साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.
- बीएनएस की धारा 73, धारा 72 के तहत आने वाले अपराधों से जुड़ी न्यायालय की कार्यवाही से जुड़ी जानकारी छापने या प्रकाशित करने पर रोक लगाती है. इस धारा के तहत, दो साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है.
- हालांकि, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को प्रकाशित करना इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जाता.
- बीएनएस की धारा 72 में पीड़ित की पहचान उजागर करने पर कुछ अपवाद भी हैं. जैसे कि, जांच अधिकारी के आदेश से, पीड़ित की लिखित अनुमति से, या अगर पीड़ित की मृत्यु हो गई हो, वह बच्चा हो, या उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो