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सूचना नहीं देने, देरी से देने या गलत देने पर इन नियमों-कानूनों का उल्लंघन होता है ?अब अधिक अपील नही सीधे मुकदमें दायर किये जायेगे।

भारत में कानून की अवहेलना करना अब पड सकता है भारी RTI कार्यकर्ता ने किया शुरुआत अब होगी अपील नही सीधे मुकदमें दायर

अब तक सभी कार्यालयो (पुलिस, SDM, JVVNL,AVVNL,नगरपालिकाओं,पंचायत समिति BDO, कृषि डिप्लोमा, कृषि , उद्यानिकि,पशुपालन,नगरपालिका,ग्राम पंचायत,सरकारी स्कूलों एवम अन्य सभी सरकारी विभागों मे मेरे द्वारा RTI. आवेदन लगाये गये थे और निरीक्षण भी किये थे , मगर आदतन अधिकारियो के रवैया को देखते हुए अब अधिक अपील नही सीधे मुकदमें दायर किये जायेगे। कई की तो शुरुवात भी की जा चुकी है।

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सूचना नहीं देने, देरी से देने या गलत देने पर इन नियमों-कानूनों का उल्लंघन होता है

  1. किसी भी लोकसेवक के लिए यह अनिवार्य होता है कि वह अपने विभाग और अपने पद से सम्बंधित कानूनों और नियमों की जानकारी रखे. इन कानूनों और नियमों का पालन नहीं करने पर और ऐसा करके विभाग या आमजन को नुकसान पहुँचाने पर उसके विरुद्ध सिविल सेवा नियमों के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. सूचना का अधिकार अधिनियम भी भारत और राजस्थान के शासन का बनाया कानून है. इसका अपमान करना सेवा नियमों के विपरीत है.
  2. अगर लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना न देने या गलत देने पर अपील में यही सूचना देनी पड़ती है तो फिर आवेदक को उन प्रतियों के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है. यानि तब सूचनाएँ निशुल्क मिलती हैं. ऐसे में लोक सूचना अधिकारी की भूल का खामियाजा शासकीय कोष को होता है. सभी अधिकारी जानते हैं कि राजकोष को नुकसान पहुँचाने का क्या अंजाम होता है. विभाग को कागजी सबूत के लिए कहीं और नहीं जाना होगा. निशुल्क प्रतियाँ देने में आये खर्च का रिकोर्ड पास में ही होता है.
  3. भारतीय दंड संहिता की धारा 166 और 167 में लिखा है कि लोकसेवक होते हुए आप जानबूझकर ऐसा कार्य नहीं कर सकते जिससे किसी को कोई क्षति पहुंचे. सूचना नहीं देकर मानसिक और आर्थिक क्षति पहुंचाने का काम करते ही इस धारा के उल्लंघन में अदालत में मुकदमा दर्ज हो सकता है. साथ ही दंड संहिता की धारा 217 में अपील अधिकारियों द्वारा अपने अधीन काम कर रहे लोक सूचना अधिकारियों की गलतियों को छुपाने पर दंड का प्रावधान है. द्वितीय अपील में आवेदक के जाने पर प्रथम अपील अधिकारी भी बराबर के दोषी हो जाते हैं.
  4. सूचना के अधिकार अधिनियम का अपमान करके कोई भी अधिकारी संसद और विधानसभा की भी अवमानना का दोषी हो जाता है. इन सदनों में बने कानूनों का पालन करना सभी लोकसेवकों का कर्तव्य होता है. वरना इन सदनों की क्या उपयोगिता रह जायेगी ?
  5. सूचना नहीं देने, गलत देने या देरी से देने पर लोक सूचना अधिकारी के प्रशिक्षण पर भी सवाल खड़ा हो जाता है. प्रशिक्षण नहीं होने या प्रशिक्षण पर हुए खर्च और उसके मूल्यांकन पर भी प्रश्न चिन्ह लग जता है.
    सूचना के अधिकार अधिनयम को लागू हुए 16 वर्ष से भी ज्यादा हो गए हैं और अब यह लुकाछिपी का खेल बहुत हो गया है. लोक सूचना अधिकारियों को अधिनियम की मूल भावना को समझते हुए आवेदन करने वाले जागरूक नागरिकों की मदद करनी चाहिए.
    भारत राष्ट्र का निर्माण सार्थक तभी होगा जब इस देश में असली लोकतंत्र होगा जो विकास के प्रति समर्पित होगा और पारदर्शिता के साथ जवाबदेही भी सुनिश्चित करेगा.
    लोकसेवकों द्वारा जनता के काम नहीं करना या उसमें अड़ंगे डालना या आमजन के साथ दुर्व्यवहार करना अब इस देश में बहुत हो गया. इसे अब आगे सहन नहीं किया जायेगा.

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.वंदे मातरम !

लॉयर #महावीर_पारीक #लाडनूँ

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जिला नागौर 341303

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