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पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए सूचना की सत्यता और विश्वसनीयता पर गौर करने की जरूरत नहीं

विनोद कुमार पांडेय और अन्य बनाम सीश राम सैनी और अन्य (2025 INSC 1095)

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए सूचना की सत्यता और विश्वसनीयता पर गौर करने की जरूरत नहीं है। यदि सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है, तो पुलिस का कर्तव्य है कि वह तुरंत एफआईआर दर्ज करे और जांच शुरू करे।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय Vinod Kumar Pandey & Anr. बनाम Sheesh Ram Saini & Ors. (10 सितंबर 2025)

बिना अनुमति के किसी की कॉल रिकॉर्ड करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और आईटी एक्ट 2000 की धारा 72 के अनुसार यह अपराध है, जिसकी सजा 2 साल तक की जेल, ₹1 लाख जुर्माना या दोनों हो सकती है

🇮🇳 भारत का सर्वोच्च न्यायालय

नागरिक अपीलीय अधिकारिता (CIVIL APPELLATE JURISDICTION)
सिविल अपील संख्या ___ वर्ष 2025
(विशेष अनुमति याचिका (S.L.P. (C)) संख्या 7900/2019 से उत्पन्न)

विनोद कुमार पांडे एवं अन्य — अपीलकर्ता
बनाम
शीश राम सैनी एवं अन्य — प्रतिवादी

निर्णय दिनांक: 10 सितंबर, 2025
न्यायमूर्ति: पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले


🔹 1. प्रारंभिक बातें

सुप्रीम कोर्ट ने विलंब को माफ किया, अनुमति दी गई, और सभी पक्षों की दलीलें सुनीं।
ये मामले CBI के दो अधिकारियों — विनोद कुमार पांडे (तत्कालीन इंस्पेक्टर, CBI) और नीरज कुमार (तत्कालीन संयुक्त निदेशक, CBI) — से संबंधित हैं।


🔹 2. मामले की पृष्ठभूमि

दो व्यक्तियों — विजय अग्रवाल और शीश राम सैनी — ने दिल्ली हाईकोर्ट में रिट याचिकाएँ दायर की थीं (क्रमशः 675/2001 और 738/2001), जिनमें आरोप लगाया गया था कि इन दो CBI अधिकारियों ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं (506, 341, 342, 166, 218, 463, 465, 469, 120-B) के तहत अपराध किए हैं।

दोनों रिट याचिकाओं पर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 26 जून 2006 को निर्णय दिया और दिल्ली पुलिस को आदेश दिया कि इन शिकायतों के आधार पर FIR दर्ज कर जांच की जाए


🔹 3. हाईकोर्ट का आदेश

  • हाईकोर्ट ने माना कि शिकायतों में प्राथमिक दृष्टया (prima facie) संज्ञेय अपराध बनता है।
  • दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को जांच का आदेश दिया गया।
  • CBI की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट (26 अप्रैल 2005) को नजरअंदाज करने को कहा गया क्योंकि उसमें कोई अपराध नहीं पाया गया था।

🔹 4. अपील

दोनों CBI अधिकारी इस आदेश से असहमत थे और उन्होंने लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) दाखिल की, जो 2019 में खारिज कर दी गई
इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल की।


🔹 5. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और निर्णय

(a) विलंब माफ किया गया

याचिकाकर्ताओं ने 12 साल की देरी का कारण बताया कि वे LPA की प्रक्रिया में लगे हुए थे। कोर्ट ने माना कि देरी जानबूझकर नहीं थी, इसलिए माफ की गई।

(b) अपीलकर्ताओं के तर्क

वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने तर्क दिया कि —

  • शिकायतों में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता था।
  • हाईकोर्ट ने बिना उचित प्रक्रिया के FIR का आदेश दिया।
  • CBI की जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि कोई अपराध नहीं है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए था।
  • नीरज कुमार के खिलाफ कोई आरोप नहीं था।
  • जांच के लिए स्पेशल सेल का चयन अनुचित था।

(c) प्रतिवादी का तर्क

एएसजी एस. वी. राजू ने कहा कि —

  • CBI को पक्षकार बनाया जाना चाहिए था।
  • CBI अधिकारियों के कार्य उनके पद के दायरे में थे, इसलिए धारा 197 Cr.P.C. के तहत अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए।
  • शिकायतें समय सीमा (limitation) से परे थीं।

🔹 6. सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

(i) CBI को पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं

कोर्ट ने कहा —

“CBI संस्था नहीं, बल्कि वे अधिकारी व्यक्तिगत रूप से प्रभावित हैं, इसलिए CBI को पक्षकार बनाना आवश्यक नहीं।”

(ii) अपराध के तत्व मौजूद

कोर्ट ने पाया कि —

  • दस्तावेज जब्ती (seizure) की प्रक्रिया में अनियमितताएँ थीं; जब्ती मेमो 27.04.2000 को बनाया गया, जबकि जब्ती 26.04.2000 को हुई थी — यह CBI मैनुअल के विपरीत था।
  • विजय अग्रवाल को जमानत आदेश के बावजूद बुलाया गया और दबाव डाला गया, जिससे दुरुपयोग और धमकी के आरोप साबित प्रतीत हुए।

(iii) कोर्ट की यह टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है —

“कभी-कभी वे भी जांच के दायरे में आने चाहिए जो दूसरों की जांच करते हैं — ताकि जनता का विश्वास बना रहे।”

(iv) FIR दर्ज करना अनिवार्य

कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2014) 2 SCC 1 के फैसले का हवाला दिया —
यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का संकेत है, तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है।

(v) जांच की जिम्मेदारी

  • अब FIR दर्ज होने के बाद जांच दिल्ली पुलिस करेगी (स्पेशल सेल नहीं)।
  • जांच Assistant Commissioner of Police (ACP) से कम अधिकारी नहीं करेगा।
  • CBI की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को प्रारंभिक सूचना (preliminary inquiry) के रूप में देखा जा सकता है, परंतु वह निष्कर्षात्मक (conclusive) नहीं होगी।

🔹 7. सुप्रीम कोर्ट के आदेश

  1. FIR दर्ज की जाएगी और जांच दिल्ली पुलिस द्वारा की जाएगी।
  2. जांच अधिकारी (I.O.) को 3 माह के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश।
  3. अपीलकर्ता अधिकारी जांच में सहयोग करें और उपस्थित हों।
  4. जब तक वे सहयोग करते रहेंगे, उनके खिलाफ गिरफ्तारी जैसी कोई कार्रवाई नहीं होगी, जब तक I.O. यह न माने कि हिरासत में पूछताछ आवश्यक है
  5. उच्च न्यायालय के आदेशों में आंशिक संशोधन कर अपीलें निस्तारित की गईं।

🔹 8. निष्कर्ष (Final Remarks)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि —

“न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखाई भी देना चाहिए। जब जांचकर्ता पर ही आरोप हों, तब जांच अवश्य होनी चाहिए — ताकि जनता का विश्वास प्रणाली में बना रहे।”


🏛️ निर्णय:

  • अपीलें आंशिक रूप से स्वीकृत।
  • FIR दर्ज करने और जांच के आदेश बरकरार।
  • CBI रिपोर्ट को केवल संदर्भ स्वरूप देखने की अनुमति।
  • तीन माह में जांच पूर्ण करने का निर्देश।
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